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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-७० २३८ प्रतिदिन मंदिर में जाते रहेंगे तो कभी न कभी परमात्मा के प्रेमी बनेंगे, परमात्मा के भक्त बनेंगे....।' ऐसी धारणा से वे आपको आग्रह करते होंगे? आप उनकी भावना को समझें। प्रतिदिन मंदिर जाते रहेंगे, परमात्मा की मूर्ति की पूजा करते रहेंगे.... तो एक दिन कभी न कभी Pin Point खुल जायेगा। हृदय में परमात्म-प्रेम का सागर हिलोरें लेता रहेगा। आपको दिव्य आनंद की अनुभूति होती रहेगी। प्रमोद-भाव : विशिष्ट आराधक-मोक्षमार्ग के आराधक-सम्यकदर्शन-ज्ञान-चारित्र्य के आराधक साधुपुरुषों को देखकर, उनके प्रति प्रमोद-भाव पैदा होना चाहिए। वे महापुरुष कैसा उत्तम जीवन जीते हैं, स्वेच्छा से कितने कष्ट सहन करते हैं, उस विषय में चिन्तन करना चाहिए। इस विषय में आपका चिन्तन-मनन होगा तो ही अतिथिजनों के प्रति आदरभाव पैदा होगा। ___ एक सावधानी रखना। सभी अतिथि-साधुपुरुष उत्कृष्ट कोटि के नहीं होते हैं। उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य - तीनों कक्षा के अतिथि होते हैं। सभी अतिथियों से त्याग-तप और संयम की एकसमान अपेक्षा नहीं रखना। दूसरी बात भी कह दूँ । जो पूज्य होते हैं, वंदनीय होते हैं उनकी कभी भी आलोचना नहीं करना । हाँ, यदि आपको संपूर्ण सत्य वृत्तान्त ज्ञात हो कि 'यह साधु नहीं है, मात्र साधु का वेष है', तो आप उनसे दूर रहें। निन्दा-विकथा में उलझें नहीं। साधुता का मार्ग सरल तो है नहीं, इस मार्ग पर चलनेवाले सभी तो सफल होते ही नहीं। किसी किसी का पतन भी होता है। कुछ ऐसे उदाहरण देखकर या सुनकर, सभी साधुओं के लिए वैसी धारणा नहीं बनानी चाहिए। ० दोषदर्शन प्रमोद-भाव को कुचल डालता है। ० गुणदर्शन प्रमोद-भाव को विकसित करता है। ० प्रमोद-भाव से दोषों का नाश होता है, गुणों की वृद्धि होती है। करुणा-भाव : __दूसरे जीवों के दुःख देखकर, उन दुःखों को मिटा देने की भावना ही तो करुणा-भाव है | मानवता के अनेक गुणों में यह सर्वप्रथम गुण है। आत्मविकास की प्रारम्भिक भूमिका है करुणा। For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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