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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-७० २३७ ० एक भाई ऐसे हैं, जो प्रभुपूजा करते हैं, दीन-दु:खीजनों को दान देते हैं, परन्तु अतिथि-सत्कार नहीं करते हैं। ये सारे उदाहरण हैं औचित्यभंग करनेवालों के। ये तीनों कार्य गृहस्थ जीवन के शृंगार हैं। यदि आपके घर में प्रभुपूजा होती है, अतिथि का सत्कार होता है और दीनजनों को दान मिलता है, तो आपका घर प्रशंसनीय बनता है। समाज में और शिष्टपुरुषों में आप श्लाघनीय बनते हो। __ये तीन शुभ कार्य तभी औचित्यपूर्ण ढंग से हो सकते हैं, जब तीन प्रकार के शुभ भाव आपके हृदय में जगे होंगे। १. परमात्मा के प्रति-भक्ति का भाव । २. साधुपुरुषों के प्रति 'ये मोक्षमार्ग के आराधक हैं', ऐसा समझकर अहोभाव | यानी मोक्षमार्ग की आराधना का भाव-प्रमोद भाव । ३. दीन-दुःखी के प्रति करुणा का भाव । प्रीति-भक्ति का भाव : परमात्मा के प्रति किसी जीवात्मा को सहजता से प्रीति हो जाती है, तो किसी जीव को प्रीति करनी पड़ती है। परमात्मा का मन्दिर और उनकी मूर्ति, परमात्मतत्त्व की स्मृति करवाते हैं। परमात्मा की स्मृति में परमात्मा के अनन्त गुण, असंख्य उपकार....इत्यादि समाविष्ट होते हैं। स्मृति से प्रीति जाग्रत होती है। प्रीति से भक्ति पैदा होती है। प्रीति तीन बातें पैदा करती हैं : दर्शन, स्पर्शन और कीर्तन| जिसके प्रति प्रीति होती है, उसके दर्शन किये बिना चैन नहीं मिलता। इसलिए प्रभात में उठते ही पहला स्मरण परमात्मा का किया जाता है। फिर मंदिर जाकर परमात्मा की मूर्ति का दर्शन करते हो, दर्शन के बाद पूजन करते हो और कीर्तन भी करते हो। यह सब 'प्रीति' ही करवाती है। ___ सभा में से : परमात्मा के प्रति प्रीति न हो और कोई जबरन् दर्शन-पूजन करवायें, तो क्या वह उचित है? ___ महाराजश्री : आपसे जबरन दर्शन-पूजन करवानेवालों की आपके प्रति प्रीति होगी? वे आपको चाहते होंगे? वे यह भी चाहते होंगे कि आप परमात्मा से प्रीति करनेवाले बनें! उनकी ऐसी धारणा होनी चाहिए कि 'ये मेरे स्नेही For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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