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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-६१ १३९ आपका संसर्ग दूसरों के लिए पारसमणी का संपर्क बन जाय! गुणवान् बनो। इस युग में गुणवानों का अकाल पड़ गया है। गुणवान् बनने के लिए सदाचारी और सद्विचार वाले मनुष्यों का संपर्क बनाये रखें। विचार अच्छे हों परन्तु आचार अच्छे न हों वैसे लोगों का संपर्क नहीं करना है। वैसे आचार अच्छे हों, परन्तु विचार अच्छे न हों वैसे लोगों का भी संपर्क नहीं करना है। वैसे आचार अच्छे हों, परन्तु विचार अच्छे न हों वैसे लोगों का भी संपर्क नहीं करना है। आचार और विचार दोनों अच्छे हों वैसे सत्पुरुषों का संपर्क बनाना है। जो लोग जुआ नहीं खेलते हों, शराब नहीं पीते हों, मांसभक्षण नहीं करते हों, परस्त्रीगमन नहीं करते हों, चोरी नहीं करते हों - ऐसे लोगों का संपर्क करने का आचार्यश्री कहते हैं। इस ग्रन्थ के टीकाकार आचार्यदेव कहते हैं : यदि सत्संगनिरतो भविष्यसि भविष्यसि । अथासज्जनगोष्ठीषु पतिष्यसि पतिष्यसि ।। 'यदि तू सत्संग में तत्पर होगा तो आबाद होगा, और यदि तू दुर्जनों का संग करेगा तो तेरा पतन होगा।' __ सत्संग-सत्समागम का तो अद्भुत प्रभाव है। इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं कि सत्पुरुषों के संपर्क से मनुष्य का कैसा उत्थान होता है। पतन की गहरी खाई में गिरते मनुष्य को सत्पुरूष बचा लेते हैं। ___ श्री हेमचन्द्रसूरिजी के संपर्क से, संसर्ग से राजा कुमारपाल ने अपने जीवन को उन्नत बनाया था, प्रजा में भी अहिंसादि धर्म का प्रसार किया था। प्रजा के दुःख दूर किये थे। परन्तु कुमारपाल के स्वर्गवास के बाद राजा अजयपाल ने सत्पुरुषों का संपर्क नहीं रखा था। दुर्जनों का, चापलूसी करनेवालों का संपर्क रखा था तो उसकी स्वयं की तो हत्या हो गई थी परन्तु कुमारपाल के द्वारा निर्मित जिनमंदिरों का भी उसने नाश करवाया था। प्रजा को दुःख और संत्रास दिया था। दुर्जनों की दोस्ती से अधःपतन : ___ श्री बप्पभट्टीसूरिजी के संपर्क से आम राजा पतन के खड्डे में गिरते बच गया था। न? एक नाचनेवाली हीनकुल की लड़की के मोह में फँस गया था आम राजा! बप्पभट्टीसूरिजी को खयाल आ गया था। तरकीब से आचार्यदेव ने For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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