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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-६१ १३८ में चोरों ने पकड़ लिया। वे चोर खून के व्यापारी थे। मंत्रीपत्नी को जंगल में अपने अड्डे पर ले गये। उसके शरीर से खून निकालने के लिए घोर यातना देने लगे। उस समय उसको अपना पति, अपना घर वगैरह याद आया होगा या नहीं? अपनी भूलों का अहसास हुआ होगा या नहीं? उसके मन में हुआ होगा कि 'अब यदि इस यातना से छुटकारा हो जाय तो मैं कभी भी मेरे पति से झगड़ा नहीं करूँगी, गुस्सा नहीं करूँगी, जिद नहीं करूँगी....मेरे किये हुए पापों का फल मुझे इसी जन्म में मिल गया।' ___ आये होंगे न ऐसे विचार? पति के गुण भी उस समय याद आये होंगे न? 'मैंने देव जैसे मेरे पति को कितना परेशान किया? ये पाप ही उदय में आये हैं....अब कभी भी उनको परेशान नहीं करूँगी। वे जैसे कहेंगे वैसे ही करूँगी....उनको मैं मेरे देवता मानूँगी....।' ऐसा-ऐसा सोचती होगी न? डाकुओं ने उसको दुःख देने में कमी नहीं रखी थी। दोषमुक्त होने के पश्चात ही जीवन में शांति : महामंत्री गुणवान थे। उन्होंने पत्नी के दोषों को, भूलों को भूलकर उनकी खोज करवाई। भरसक प्रयत्न करके पत्नी को खोज निकाला और डाकुओं को मारकर उसको मुक्त किया। मंत्री ने पत्नी को घर लाकर एक शब्द का भी उपालंभ नहीं दिया। न रोष किया न भूतकाल याद कराया। पत्नी मंत्री के चरणों में गिर पड़ी, फूट-फूटकर रोने लगी। अपनी भूलों की क्षमा माँगने लगी और भविष्य में कभी भी अनादर नहीं करने की प्रतिज्ञा करने लगी। मंत्री ने भी सरल हृदय से क्षमा दे दी। मंत्रीपत्नी के जीवन में अच्छा परिवर्तन आया । गुस्सा करना ही भूल गई! शास्त्र में उसको 'अचंकारी भट्टा' कहा गया है। जब वह दोषमुक्त हुई तब उसने जीवन में सुख-शान्ति पायी। जब क्षमा, नम्रता वगैरह गुणों की समृद्धि पायी तब जीवन में प्रसन्नता का अनुभव हुआ। गुणवान् बनने के लिए सदाचारी का संग करो : सभा में से : उसको तो गुणवान् पति मिला था न? महाराजश्री : आप भी गुणवान् पति बन सकते हो न? गुणवान् पिता बन सकते हो न? गुणवान् मित्र बन सकते हो। गुणवान् भक्त बन सकते हो। For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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