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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- ६० १२८ बातों पर विश्वास कर आप कभी पूज्य एवं पवित्र पुरुषों की निन्दा करके, अपना भयानक अहित करते हो । सत्ताधीशों का अवर्णवाद इसी जन्म में दुःख देता हैं, साधुजनों का अवर्णवाद इहलोक-परलोक में दु:ख देता हैं। इसलिए कहता हूँ कि अवर्णवाद की आदत से बचते रहो । किसी का भी अवर्णवाद मत करो । यदि आपको इस मानवजीवन में धर्मपुरूषार्थ से आत्मा का कल्याण करना है और शान्त, निर्भय और निश्चिंत जीवन जीना है तो आपको अवर्णवाद का व्यसन त्यागना ही होगा । परमात्मभक्ति में लीन होना है, सम्यग्ज्ञान का आनंद पाना है और विशिष्ट व्रत - नियमों से जीवन को संयममय बनाना है तो आप अवर्णवाद के पाप से दूर रहें। आज राजा तो रहे नहीं, हरिभद्रसूरिजी का समय राजाओं का समय था, इसलिए उन्होंने विशेष रूप से राजा वगैरह के अवर्णवाद का निषेध किया है। राजा-मंत्री-सेनापति वगैरह सत्ताधीशों का अवर्णवाद करने से अवश्य आफत के बादल घिर जाते थे और घोर दुःखों की वर्षा होती थी। आज के युग में अपने देश में राजा लोग नहीं रहे परन्तु सत्ताधीश तो रहे ही हैं । केन्द्रीय मंत्री और राज्य के मंत्री राजा जैसे ही है न? अवर्णवाद करने से तो दुश्मन ही बढ़ेंगे : सभा में से: लोकसभा के सभ्य और विधानसभा के सभ्य भी राजा जैसे बन गये हैं। मंत्री वर्ग तो 'महाराजा' बन गये हैं । महाराजश्री : यदि इन आधुनिक राजा-महाराजाओं का आप अवर्णवाद करें और उनको मालूम हो जाय कि 'यह व्यक्ति मेरा अवर्णवाद करता है, तो खुश हो कर बक्षिस देगा न? सभा में से : यदि उनका चले तो कत्ल ही करवा दें! महाराजश्री : जिनका अवर्णवाद करते हो 'वे नहीं जानते हैं' ऐसा मानकर करते रहते हो, परन्तु इससे जो पापकर्म बँधते हैं, वे कर्म जब उदय में आयेंगे तब क्या होगा, यह सोचा है कभी? ऐसे परिवार में जन्म होगा कि जहाँ निरन्तर तुम्हारा पराभव ही होता रहे, तिरस्कार ही होता रहे । मात्र एक जन्म में ही नहीं, असंख्य जन्म तक ! फिर क्यों करना चाहिए अवर्णवाद ? 'मुझे मेरे शत्रु बनाने नहीं हैं, शत्रु बढ़ाने नहीं हैं' - ऐसा दृढ़ संकल्प कर For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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