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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२९ प्रवचन-६० लेना चाहिए। अवर्णवाद करने से शत्रु बढ़ते हैं, शत्रु बढ़ने से भय बढ़ता है, भय बढ़ने से तन-मन अस्वस्थ बनते हैं, इससे धर्मआराधना में विघ्न आते हैं।' इतना सोचकर, शत्रु नहीं बढ़ाने का आत्मसाक्षी से निर्णय कर लो। जहाँ अवर्णवाद होता हो वह स्थान छोड़ दो : अवर्णवाद की आदत से मुक्त होने का संकल्प कर, पहले तो आप उन लोगों का अवर्णवाद करना छोड़ दें कि जिनसे आपका कोई संबंध नहीं है। जिनके साथ आपको कुछ भी लेना-देना नहीं है। जिस जगह दो-पाँच व्यक्ति मिलकर अवर्णवाद करते हों, वहाँ जाकर बैठो ही मत। आपके घर आकर यदि कोई ऐसी बातें करें तो आप अपना विरोध प्रकट कर दें : 'मेरे घर में मैं ऐसी बातें पसंद नहीं करता हूँ।' घर पर आने वाले स्नेही-स्वजन नाराज हो जाय तो हो जाने दो। वे लोग एक दिन आपकी सच्ची बात को अवश्य समझेंगे। बाद में आप स्नेही-सम्बन्धी और मित्रों के अवर्णवाद करना छोड़ दो। किसी की भी गुप्त बात-गुप्त दोष, जो आप जानते हो, किसी के भी सामने मत कहो। अवर्णवाद का जवाब अवर्णवाद नहीं : प्रश्न : क्या कोई हमारा अवर्णवाद करता हो तो उनका अवर्णवाद हम नहीं कर सकते? कोई हमारे दोष प्रकट करता हो तो क्या हम उसके दोष प्रकट नहीं कर सकते? समाधान : ऐसा करने से यदि मित्रता होती हो, शत्रुता मिट जाती हो तो अवश्य करें। परन्तु यह बात संभव है क्या? एक-दूसरे के अवर्णवाद फैलाने से परस्पर द्वेष ही दृढ़ होता जायेगा। मित्रता नष्ट हो जायेगी। तो आप कहेंगे : हमारे अवर्णवाद करनेवालों को हम करने दें क्या? यदि हम प्रतिकार नहीं करते हैं तो दुनिया में बदनाम होते हैं....संसार में ऐसी बदनामी कैसे सहन करें? मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि अवर्णवाद करनेवाले को आप दूसरे उपायों से रोकने का प्रयत्न कर सकते हैं, परन्तु अवर्णवाद का जवाब अवर्णवाद नहीं होना चाहिए । इसमें भी बहुजनमान्य व्यक्ति का अवर्णवाद तो कभी भी नहीं करना। For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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