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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रवचन- ६० द्वेष की आग भड़क उठे वैसा मत बोलो : Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२७ महाराजश्री : आप लोग तो कहेंगे ही कि 'कहनी ही चाहिए, परन्तु मैं नहीं कहूँगा। जो कहने से प्रेम नष्ट होता हो और द्वेष उत्पन्न होता हो, वैसी बातें नहीं कहनी चाहिए। दूसरों से वैर बाँधना कभी भी उचित नहीं है। दूसरों से शत्रुता बाँधने से आपका मन अशान्त बनेगा, चिन्ता और भय से व्याकुल बनेगा और आपकी धर्म-आराधना खंडित हो जायेगी। आप किसी न किसी आपत्ति में फँस जायेंगे । आपके निमित्त से आपके परिवार को भी सहन करना पड़ेगा। राजनीति में रस लेने वाले लोगों के परिवारों का अध्ययन करना । राजनीति में अवर्णवाद कर्तव्य माना जाता है न? लोकशाही के इस युग में, परनिन्दा और स्वप्रशंसा करना सामान्य हो गया है। शासक पक्ष और विरोध पक्ष, एक-दूसरे की भूलें खोजते रहते हैं, एकदूसरे के रहस्य खोजते रहते हैं .... और यदि कोई रहस्य हाथ लग जाय तो जोर-शोर से अवर्णवाद शुरू कर देते हैं! प्रेस और प्लेटफार्म के माध्यम से अवर्णवाद होता है! वाणी - स्वातंत्र्य का कितना घोर दुरुपयोग होता है ? जिसको जिसका भी अवर्णवाद, निन्दा करनी हो - करता रहता है! देश का राष्ट्रपति हो, प्रधानमंत्री हो, मुख्यमंत्री हो... कोई भी हो - सामान्य नागरिक भी उनके विरुद्ध बातें करता है! सही हो या गलत.... वह बातें करता रहता है! जिस व्यक्ति के साथ कुछ लेना-देना नहीं हो, उस व्यक्ति की बातें भी करता रहता है! उनके दोषों को, व्यक्तिगत दोषों को भी गाता रहता है ! For Private And Personal Use Only पूज्य पुरुषों की निंदा से घोर पाप : सभा में से : हम धार्मिक कहलाने वाले लोग भी अवर्णवाद करते हैं..... महाराजश्री : क्योंकि आप लोगों को अवर्णवाद करने का लायसन्स मिल गया होगा ? साधुओं का और साधर्मिकों का अवर्णवाद करने में पुण्य बँधता होगा? आप लोग विशेष रूप से साधुपुरुषों का और साधर्मिकों का ही अवर्णवाद करते हो न? किसी साधुपुरुषों का कोई दोष जान लिया या देख लिया, क्या आप अपने मन में रख सकेंगे ? नहीं, जब तक दो-चार व्यक्ति के सामने बोलेंगे नहीं तब तक आप शान्ति से सो नहीं सकेंगे ! इसमें भी जिन साधुओं के प्रति आपकी श्रद्धा नहीं होगी, जो दूसरे गच्छ के या दूसरे संप्रदाय के साधु होंगे, उनका अवर्णवाद तो आप लोग मजे से करते हो न ? जानते हो, इस प्रकार के अवर्णवाद से कितने घोर पापकर्म आप बाँधते हो ? सुनी-सुनायी
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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