SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-६० १२६ मान लो कि अवर्णवाद से आप किसी को गिरा नहीं सकोगे। किसी को नुकसान नहीं पहुंचा सकोगे। नुकसान होगा आपको! व्यक्तित्व गिरेगा आपका! ___ एक बहुत बड़ा नुकसान आपको होगा! जिसका आप अवर्णवाद करोगे उसको आपके प्रति द्वेष होगा। आपके प्रति शत्रुता होगी। वह व्यक्ति आपको दुश्मन मानेगा। यह नुकसान आप समझ सकते हो क्या? दुनिया में जितने शत्रु ज्यादा इतना नुकसान ज्यादा। शत्रु बढ़ाने में बुद्धिमत्ता नहीं है, मित्र बढ़ाने में बुद्धिमत्ता है। शत्रु बढ़ने से भय बढ़ता है, असुरक्षा बढ़ती है, अशान्ति बढ़ती है। तो फिर, अवर्णवाद क्यों करना? लाभ कुछ नहीं, नुकसान ही नुकसान! पारिवारिक क्लेश की जड़ अवर्णवाद : पारिवारिक जीवन में कटुता और परस्पर विद्वेष क्यों पैदा होता है? अनेक कारणों में से एक कारण होता है अवर्णवाद | जब पिता ही पुत्र का अवर्णवाद करता है तब पुत्र के हृदय में पिता के प्रति प्रेम रहेगा क्या? द्वेष ही रहेगा? पुत्र के साथ जब पिता को कोई बात में अनबन हो गई, मनमुटाव हो गया कि पिता अपने ही पुत्र के गुप्त दोषों को प्रगट करने पर उतारू हो जायं, प्रच्छन्न भूलों को प्रगट करने लगे....तब पुत्र को पिता के प्रति कितना घोर द्वेष होगा? द्वेष में मनुष्य पागल सा बन जाता है। पुत्र यदि पिता के दोषों को जो कि गुप्त हों, प्रगट करेगा या नहीं? और एक-दूसरे के दोष प्रगट करने से लाभ क्या होता है? कुछ नहीं, नुकसान ही होता है। वर्तमान काल में तो अवर्णवाद को ज्यादा उत्तेजना मिले, वैसी परिस्थितियाँ पैदा हो गई हैं। पति-पत्नी के सम्बन्धों में जब तनाव पैदा होते हैं तब एकदूसरे का अवर्णवाद, वाचिक और लेखित, शुरू हो जाता है। न्यायालय में, अपने पक्ष को दृढ़ करने के लिए एक-दूसरे पर सही या गलत आरोप किये जाते हैं। एक पति ने अपनी पत्नी से तलाक लेने के लिए न्यायालय में कहा कि 'हमारा यह लड़का मुझसे नहीं हुआ है, हमारे नौकर से हुआ है!' ____ सोचो कि उसकी पत्नी को यह बात सुनकर कितना गुस्सा आया होगा? और उसने अपने पति की गुप्त बातें, जो वह जानती होगी, कही होंगी या नहीं? सभा में से : अवश्य कही होंगी! कहनी ही चाहिए! For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy