SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-३१ -. छल-कपट और दगाबाजी करनेवाला मरकर अक्सर तो. जानवरों की दुनिया में पहुँच जाता है कि जहाँ पर दुःख के भार से जीवात्मा कुचली जाती है। बाहर जिस अनाज का दाना भी नसीब न होता हो उसे तो न जेल की मोटी-मोटी रोटियाँ भी मीठी लगती हैं। उसके लिए जेल भी महल बन जाता है कि जिसके पास रहने के लिए न तो झोंपड़ी है, न ही कोई छप्पर है! धंधा करते समय इतना तो जरुर सोचना कि 'मैं जैन हूँ, मुझे। ऐसा धंधा नहीं करना चाहिए कि जिससे मेरा धर्म बदनाम हो!' पापों से यदि बचना है तो परलोक को आँखों के सामने रखकर जियो! धंधा भी धर्म हो सकता है यदि हम उसके लिए निश्चित नियम एवं आचारसंहिता का कड़ा पालन करें, अन्यथा तो धर्म को भी हम व्यापार बना के रख देंगे। प्रवचन : ३२ महान श्रुतधर, पूज्य आचार्यश्री हरिभद्रसूरीश्वरजी स्वरचित 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ के माध्यम से गृहस्थजीवन का सामान्य धर्म समझा रहे हैं! धनार्जन करने में न्याय-नीति और प्रामाणिकता का पालन करना सर्वप्रथम गृहस्थ धर्म है। अन्याय-अनीति करनेवाले मरकर तिर्यंचगति में : आचार्यदेव ने एक बात अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बताई कि न्याय-नीति से लाभान्तराय कर्म का नाश होता है। यह बात बड़ी 'टेक्निकल' बात है। काफी समझने की बात है। वैसी ही एक दूसरी 'टेक्निकल' बात आज बताता हूँ| अन्याय-अनीति करनेवाला मरकर तिर्यंचगति में जन्म पाता है। यानी कि पशु-पक्षी की योनि में जन्म पाता है। क्या यह बात महत्त्वपूर्ण नहीं है? 'रेड सिग्नल' है, अनीतिअन्याय करनेवालों के लिए। श्रीमद् विमलाचार्यजी ने पउमचरिउं में बताया है : मायाकुडिलसहावा कूडतुलाकूडमाणववहारा । धम्मं असद्दहंता तिरिक्खजोणी उवणमन्ति ।। For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy