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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- ३१ ८५ से प्राप्त होता है। यदि वीर्यान्तराय कर्म का उदय है और मनुष्य अपनी दुर्बलता मिटाने के लिए चाहे कितनी भी दवाईयाँ करे, कितने भी 'विटामिन्स’ खाए, उसको शक्ति प्राप्त नहीं होगी। डॉक्टरों को हजारों रूपये दे दें, उसकी निर्बलता जाने की नहीं । जब तक वीर्यान्तराय कर्म का नाश नहीं करता, उसको शक्ति प्राप्त होने वाली नहीं । क्या सोच रहे हो ? : है न अंतराय कर्म का जीवात्मा के ऊपर व्यापक प्रभाव ? देना, लेना, भोगना.... जीवन की ये महत्त्वपूर्ण प्रवृत्तियाँ इसी कर्म से संचालित हैं । निर्धनता-दरिद्रता और श्रीमंताई.... इस अंतराय कर्म पर आधारित हैं । इसलिए, कर्मों का क्षय करने का पुरुषार्थ करना चाहिए । नये अन्तराय कर्म नहीं बंध जायें, इसलिए जाग्रत रहना चाहिए | इतना ज्ञान तो प्राप्त कर लेना चाहिए कि क्या-क्या करने से कौन - कौन - सा अंतराय कर्म बंधता है? कैसा कैसा धर्मपुरुषार्थ करने से कौन-कौन- सा अंतराय कर्म टूटता है ? प्राप्त करना है न ऐसा ज्ञान ? 'न्याय-नीति से रुपये नहीं मिलते हैं तो अन्याय - अनीति से रुपये कमा लें,' इस भ्रमणा को दिमाग से निकाल दें। 'रुपये अनीति - अन्याय से नहीं मिलते हैं, रूपये लाभांतराय कर्म के क्षयोपशम से मिलते हैं,' इस वास्तविकता को स्वीकार कर लिया जाये और उस कर्म का नाश करने का धर्मपुरुषार्थ किया जाये तो रुपयों के लिए आपको नहीं भटकना पड़ेगा, रुपये आपको खोजते आयेंगे। एक सावधानी रखना, अंतराय कर्म के क्षयोपशम के साथ मोहनीय कर्म का क्षयोपशम अवश्य होना चाहिए । यदि मोहनीय कर्म का क्षयोपशम नहीं हुआ है और अन्तराय कर्म का, लाभान्तराय कर्म का क्षयोपशम हुआ, तो वह क्षयोपशम विघातक बन जाएगा। लाभान्तराय कर्म के क्षयोपशम से बहुत सारे वैषयिक सुख प्राप्त होंगे और राग-द्वेष (मोहनीय कर्म) प्रबल होंगे, तो अनन्त पापकर्म बंधवायेंगे । 'न्याय और नीति से लाभान्तराय कर्म का नाश होता है' - इस सत्य को हृदय में स्थिर करें, विशेष बातें आगे करूँगा । आज बस, इतना ही । For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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