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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८४ प्रवचन-३१ मिलता है! उपभोगांतराय कर्म का उदय! २२-२२ वर्ष तक पवनंजय को अंजना का सुख नहीं मिला था! अंजना को पवनंजय का सुख नहीं मिला था... दोनों को उपभोगांतराय कर्म का उदय था। एक महिला के पास मानो कि हीरे के, सोने के उत्तम जेवर हैं, परन्तु उसका पति उसको पहनने नहीं देता है! 'जेवर पहन कर बाहर नहीं जाना, कभी कोई डाकू लूट लेगा....!' उस महिला को लाभांतराय कर्म का क्षयोपशम है इसलिए मनपसंद जेवर मिले तो सही, परंतु उपभोगांतराय कर्म का उदय होने से पहन नहीं सकती! और उस मम्मण सेठ के पास कितना धन था? पुरे मगधदेश का साम्राज्य खरीद ले, उतना धन था मम्मण के पास, परन्तु उस धन का उपभोग कर सका क्या? न मकान बनाया, न अच्छा भोजन किया, न अच्छे वस्त्र पहने, न परिवारवालों को अच्छा खिलाया-पिलाया। न उसने दान दिया! बस, उस संपत्ति को देख-देखकर खुश होता रहा! ममता और आसक्ति बढ़ाता रहा....संरक्षण करता रहा! भोगांतराय और उपभोगांतराय कर्म का घोर उदय जो था उसको! __घर में आपका मनपसंद भोजन बना है, आपने भी सोचा है कि आज जी भर के भोजन करेंगे, परन्तु अचानक पेट में दर्द हो गया और अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। भोजन मिला परन्तु भोजन कर नहीं सके! भोगांतराय कर्म का उदय! ___ कई ऐसे बड़े-बड़े श्रीमंत लोग हैं, जिनके पास अच्छे अच्छे पलंग हैं, परन्तु उनको लकड़ी की खाट पर सोना पड़ रहा है। कइयों को मात्र दूध और फलाहार पर ही जीवन पूरा करना पड़ रहा है। कुछ श्रीमन्तों को अनिच्छा से भी ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ रहा है | भोगांतराय और उपभोगांतराय कर्म का उदय होने से इस प्रकार की परिस्थितियाँ पैदा हो सकती हैं। पाँचवाँ अंतराय कर्म है वीर्यान्तराय : वीर्य यानी शक्ति, वीर्य यानी भीतरी उल्लास, उत्साह उमंग! निर्बलता, निर्वीर्यता कर्म का विपाक है। कोई थोड़ी-सी मेहनत करते थक जाता है, किसी को अच्छा काम करने का उत्साह नहीं जगता है, किसी को 'मूड' ही नहीं बनता, 'मूडलेस' बना रहता है..... यह भी वीर्यान्तराय कर्म के उदय से बनता है। वीर्यान्तराय कर्म का क्षयोपशम होने पर शारीरिक शक्ति प्राप्त होती है। चक्रवर्ती को भी पराजित कर देने का बल, वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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