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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- ३१ ८३ हो सकता है, बताओगे ? नीति - अनीति की बातें छोड़ो, आज कहाँ से ले आये हो ये फालतू बातें? दिमाग खराब हो जायेगा.....।' ऐसी ऐसी बातें सुनायेंगे न? इन संसारियों ने कई तत्त्वज्ञानियों को पागल मानकर पत्थर भी मारे हैं! गालियाँ भी दी हैं! अनेक उपद्रव भी किये हैं! यह कर्म भी संबंधित है : लाभान्तराय कर्म का क्षयोपशम होने से पाँच इन्द्रियों के विषय-सुख मिल गये हों, परन्तु यदि भोगान्तराय और उपभोगान्तराय कर्म का उदय होगा तो प्राप्त विषय-सुखों का भोग-उपभोग नहीं कर पायेंगे। प्राप्त वैषयिक सुखों का भोग-उपभोग वे ही जीव कर सकते हैं कि जिनके भोगान्तराय-उपभोगान्तराय कर्म का क्षयोपशम हुआ हो । कुछ उदाहरण : मान लो कि गीत-संगीत और दुनिया के समाचार सुनने के लिए आपने रेड़ियो घर में बसाया, लाभान्तराय कर्म का क्षयोपशम था, इसलिए रेड़ियो मिल गया, परन्तु अचानक आपके कान में दर्द हो गया, डॉक्टर को बताया, डॉक्टर ने ऑपरेशन करा लेने का सुझाव दिया, ऑपरेशन कराने पर भीतर का पर्दा फट गया..... संपूर्ण बहरापन आ गया ! अब रेड़ियो कैसे सुन सकेंगे? उपभोगांतराय कर्म का उदय ! वैसे, आपको टी.वी. सेट बसाने की इच्छा हुई, आप बाजार से खरीद लाये, लाभान्तराय कर्म का क्षयोपशम होने से टी.वी. सेट आपको मिला । परन्तु घर में जिस दिन टी.वी. आया, आपकी आँखों में दर्द हो गया, डॉक्टर ने टी.वी. देखने की मनाही कर दी ! उपभोगांतराय कर्म का उदय! घर में टी.वी. होने पर भी आप नहीं देख पाते । मान लो कि हजार-दो हजार रूपये के बढ़िया कपड़े सिलवायें । सोचा था कि दोस्त की शादी में पहनकर जायेंगे, परन्तु अचानक शरीर में 'एलर्जी' हो गई, शरीर पर फोड़े-फफोले हो आये.....! शरीर पर सूती मलमल के कपड़े के अलावा दूसरा कोई कपड़ा नहीं पहन सकते ! टेरेलिन के, पोलियेस्टर के कपड़े होने पर भी, सिन्थेटिक, रेशमी कपड़े होने पर भी आप नहीं पहन सकते! यह है उपभोगांतराय कर्म का उदय ! मनपसंद लड़की के साथ शादी हुई हो, परन्तु शादी होते ही मनमुटाव हो गया! पत्नी चली जाती है अपने मायके ! पत्नी होते हुए भी उसका सुख नहीं For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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