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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-३१ ८२ चिन्तन-मनन चाहिए। अपने मन का समाधान करते आना चाहिए। जब प्रतिकूल परिस्थिति पैदा हो जाय तब मन का समाधान कर, समता-समाधि बनाये रखना, अज्ञानी जीवों के लिए शक्य नहीं है। साधु या साध्वी के पास ऐसा ज्ञान हो कि वे प्रतिकूलताओं में तत्त्वदृष्टि से अपने मन का समाधान करें और दुर्ध्यान से बचें, तो वे ज्ञानी हैं। बहुत मुश्किल काम है, फिर भी इतना ही महत्त्वपूर्ण है। तत्त्वदृष्टि से मन का समाधान करना सीख लो तो काम हो जाय! अन्याय-अनीति करने पर भी पैसे क्यों नहीं मिलते? : 'न्याय-नीति से लाभान्तराय कर्म का नाश होता ही है'- इस बात पर आपका पूर्ण विश्वास हो जाना चाहिए | हो जायेगा न? हो या न हो, आप निश्चित रूप से मानना कि लाभान्तराय कर्म का क्षयोपशम हुए बिना सुखसंपत्ति प्राप्त होनेवाली नहीं है। आज, वर्तमान काल में यदि आपको अन्यायअनीति करने पर धन-संपत्ति मिल रही हो, तो समझना कि आपका लाभान्तराय कर्म का क्षयोपशम है, इसलिए मिल रही है। परन्तु आप अन्याय-अनीति कर रहे हो इसलिए नया लाभान्तराय कर्म बंध रहा है। जब वह कर्म उदय में आयेगा तब अन्याय-अनीति करने पर भी धन-वैभव नहीं मिलेगा। आप देखते हो न संसार में, कि अनेक लोग अन्याय-अनीति करते हैं, फिर भी उनको रूपये नहीं मिल रहे हैं। अनेक बुरे धंधे करने पर भी निर्धन ही बने रहते हैं। इसका कारण कभी भी आप लोगों ने सोचा है? दुनिया तो समझदार को भी पागल कहती है : दिमाग में जंचती है यह बात? अर्थपुरुषार्थ में पागल बने हुए लोगों के दिमाग में यह लाभान्तराय कर्मवाली बात अँचनेवाली नहीं है। पागल कभी तत्त्वज्ञानी बन सकता है क्या? हाँ, तत्त्वज्ञानी पागल बन सकता है। यदि आप तत्त्वज्ञानी बन जायें तो घर वाले लोग आपको पागल समझने लगेंगे! प्रयोग करना हो तो आज घर पर जाकर कर लेना! पिताजी को, भाई को, पार्टनर को, कह देना कि 'आज से दो नंबर का धंधा बंद कर देना है। अन्याय-अनीति का धंधा अब नहीं करना है!' देखना, वे लोग क्या कहते हैं और क्या करते हैं? वे लोग कहेंगे : 'तुम पागल हो गये हो क्या? दो नम्बर का धंधा बंद कर देंगे तो क्या कमायेंगे खाक? दो नंबर के धंधे से तो इस वर्ष दो लाख मिले हैं, तभी तो नया बंगला बन रहा है। आजकल कौन दो नम्बर का धंधा नहीं करता है? वह तो करना ही होगा। अन्याय-अनीति किये बिना कौन-सा धन्धा For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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