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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रवचन- ३१ अज्ञानता तीव्र राग-द्वेष को पैदा करती है : Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८१ भिखारी कितना तीव्र रौद्रध्यान करता है ? अज्ञानी है | अज्ञान से राग-द्वेष पैदा होते हैं। ज्यों-ज्यों सम्यक्ज्ञान का प्रकाश बढ़ता है त्यों त्यों राग-द्वेष मंद पड़ते हैं-आर्तध्यान और रौद्रध्यान मंद पड़ता है। बचना है तीव्र रागद्वेष से ? बचना है आर्तध्यान और रौद्रध्यान से? तो अज्ञानता को मिटाओ । सम्यक्ज्ञान प्राप्त करो। कर्मसिद्धान्त का ज्ञान प्राप्त करो, फिर जीवन की हर घटना को कर्मसिद्धान्त के माध्यम से सोचो । इस भिखारी के पास ऐसा ज्ञान नहीं था, वह नहीं सोच पाया कि 'मेरा लाभान्तराय कर्म प्रबल है इसलिए वे लोग मुझे भिक्षा नहीं देते हैं।' तो नगरवासी लोगों के प्रति रोष नहीं आता । भिखारी राजगृही के उस पहाड़ पर चढ़ा, जिस पहाड़ की तलहटी में नगरवासी लोग ‘पिकनिक' मना रहे थे। पहाड़ पर बड़ी बड़ी चट्टाने थीं । उसने अपनी पूरी ताकत लगाकर एक चट्टान को धक्का दिया । चट्टान नीचे की ओर लुढ़की, परन्तु साथ-साथ भिखारी खुद भी लुढ़कने लगा । उसी चट्टान के नीचे आ गया, दब गया और मर गया ! चट्टान वहीं पर रुक गई। भिखारी नगरवासियों को नहीं मार सका, बल्कि वह स्वयं मर गया ! रौद्रध्यान में मरा, मरकर नरक गति में चला गया। लाभान्तराय कर्म के उदयवाले जीवों को काफी सावधान रहना चाहिए । उनको अपनी इच्छा के अनुसार वस्तुएँ प्राप्त नहीं होती, उस समय दूसरों के प्रति दुर्भाव नहीं आना चाहिए। उनको इच्छानुसार धनप्राप्ति नहीं होगी, उस समय दूसरों के प्रति घृणा नहीं करनी चाहिए । साधु-साध्वीजी भी कोई पूर्ण ज्ञानी तो नहीं हैं : यह लाभान्तराय कर्म जिस प्रकार आप लोगों को उदय में आ सकता है वैसे हम लोगों को यानी साधुओं को भी उदय में आ सकता है। जिस साधु को इस कर्म का उदय हो, वह साधु भिक्षा के लिए घर-घर फिरे, उसको भिक्षा नहीं मिलेगी! यदि साधु ज्ञानी होगा तो अपने लाभान्तराय कर्म का विचार कर, किसी के प्रति रोष नहीं करेगा। यदि अज्ञानी होगा तो लोगों को कोसेगा ! अशान्त बनेगा, क्रोधादि कषायों से अभिभूत हो जाएगा । For Private And Personal Use Only सभा में से : साधु-साध्वीजी तो ज्ञानी ही होते हैं न? उनको गुस्सा कैसे होगा ? महाराजश्री : ऐसा नियम नहीं है कि सभी साधु-साध्वी ज्ञानी ही हों ! मात्र किताबें पढ़ लेने से ज्ञानी नहीं बन सकते। ज्ञानी बनने के लिए आत्मस्पर्शी
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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