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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-४३ २२३ कुछ लोगों को बोलने में समयमर्यादा का भान नहीं रहता है! वे लोग प्रस्तुत-अप्रस्तुत बोलते ही रहते हैं....सुननेवाले बेचारे 'बोर' हो जाते हैं। दूसरी दफा उसके पास जाना ही पसन्द नहीं करते। उनकी बातों पर विश्वास भी नहीं करते। अशिष्ट पुरुष विश्वासपात्र नहीं रहता, ऐसा बोलनेवाले लोग विश्वसनीय नहीं बन सकते। बात अँचती है न? अप्रस्तुत बोलना, ज्यादा बोलना, नुकसान करनेवाला है, वह बात अँच गई न? आदत से मुक्त होना है न? मुक्त हो सकोगे, 'मुझे इस आदत से मुक्त होना ही है, अप्रासंगिक बोलना नहीं है, ज्यादा बोलना नहीं है,' ऐसा दृढ़ संकल्प कर लो! संकल्प करने के पश्यात् वैसे शिष्ट पुरुषों की प्रशंसा करना शुरू कर दो। एक महर्षि ने कहा है : ‘अतिभुक्तिरतिवोक्तिः सद्यः प्राणापहारिणौ।' ज्यादा खाना और ज्यादा बोलना, तत्काल प्राणों का नाश करना है! समझे इस कथन का तात्पर्य? ज्यादा खाने से अजीर्ण हो जाय और मनुष्य मरणासन्न हो जाये! मर भी जाये! बहुत बोलने की आदत वाले को 'मैं क्या बोलता हूँ, इसका भान नहीं रहता है! होश गँवा देता है। न बोलने की बातें बोल देता है! आजकल बहुत से देशनेता....कि जो दिन में दो-चार प्रवचन देते रहते हैं....बोलते रहते हैं....ऐसी असंबद्ध बातें करते हैं....कि जब अखबार में वे बातें छपती हैं....देशनेता घबराते हैं और दूसरे दिन उसी अखबार में स्पष्टीकरण छपवाते हैं कि 'मैं ऐसा नहीं बोला था, अथवा ऐसा बोलने में मेरा इरादा यह नहीं था! वैसे मुनियों से कहना भी क्या ? कोई-कोई धर्मगुरू भी, कि जो हमेशा प्रवचन देते रहते हैं यदि जोश में होश गँवा देते है तो असंबद्ध और असत्य प्रतिपादन कर देते हैं | थोड़े दिन पूर्व एक भाई ने मुझे कहा : 'मैं बंबई गया था, वहाँ एक मुनिराज प्रवचन देते थे, मैं सुनने गया था, काफी जोर-जोर से चिल्लाकर प्रवचन देते थे....उन्होंने कहा : 'आजकल वातावरण इतना विलासी हो गया है कि एक भी स्त्री पतिव्रता नहीं हो सकती!' तो क्या यह प्रतिपादन सही है? ___ मैं तो सुनकर स्तब्ध हो गया! कैसा अविचारी प्रतिपादन था? एक भी स्त्री, उन मुनिराज की दृष्टि में पतिव्रता नहीं! मुनिराज की दृष्टि में सभी महिलाएं For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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