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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-४३ २२४ व्यभिचारिणी थीं। सभी महिलाओं में उनको जन्म देने वाली माता का समावेश होगा या नहीं? उनकी बहनों का समावेश होगा या नहीं? शिष्ट पुरुषों की भाषा, उनका वक्तव्य असंबद्ध नहीं होता । असंबद्ध बोलनेवाले शिष्ट पुरुष नहीं कहलाते। परन्तु किसको शिष्टता अशिष्टता की पड़ी है? कुछ अशिष्टताओंने शिष्टता के वस्त्र पहन लिये हैं! कुछ असभ्यताओं ने सभ्यता का नकाब ओढ़ लिया है। अनेक विकृतियों ने संस्कृति का लेबल लगा लिया है। प्रचार के इस युग में, 'ज्यादा बोलो....बोलते रहो....अपनी बातों का प्रचार करने के लिए ज्यादा बोलो!' यह मान्यता हो गई है। दुनिया में आज 'मौन' का अवमूल्यन हुआ है। मितभाषित्व का उपहास हो रहा है। बहुत बोलने वाले महान् माने जाने लगे हैं! इस दुनिया में रह कर, मितभाषिता का आदर्श बनाए रखना सरल तो नहीं है, फिर भी असंभव नहीं है। सभा में से : मितभाषी को तो आजकल अपने घर में भी सहन करना पड़ता है। महाराजश्री : उससे भी ज्यादा सहन करना पड़ता है अमितभाषी को! ज्यादा बोलनेवाले को! मरने का दिन आ जाता है! मितभाषिता पर विश्वास करो। आपको नुकसान तो नहीं, लाभ ही होगा। सज्जन पुरुष मितभाषी होते हैं : सज्जनों की पहचान के अनेक लक्षणों में यह एक लक्षण है कि वे मितभाषी होते हैं। जो बोलते हैं प्रास्तविक बोलते हैं। होश में बोलते हैं। स्व-पर को नुकसान न हो-वैसा सोचकर बोलते हैं। आप उनकी प्रशंसा करते हैं तो गृहस्थजीवन का चौथा सामान्य धर्म आप में आ गया समझ लें। शिष्ट पुरुषों की एक और विशेषता है अविसंवादिता। उनकी वाणी में विसंवाद नहीं होता, उनके आचरण में विसंवाद नहीं होता। होती है संवादिता। वाणी और वर्ताव में संवादिता होती है। ___ संसार में ज्यादातर लोग बोलते होते हैं कुछ, करते होते हैं कुछ! इस प्रकार जीवन जीने से मनुष्य दुःखी होता है। अशान्ति भोगता है। दुनिया की एक ऐसी चाल है कि स्वयं विसंवादी बोले, और दूसरों से संवादित वचनों की अपेक्षा रखे! विसंवादी बोलने वाले के प्रति दुनिया अविश्वास से देखती है। 'इसके बोलने पर भरोसा मत रखो, इसके बोलने का कोई ठिकाना नहीं For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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