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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२२ प्रवचन-४३ जो शिष्ट-सज्जन पुरुष होते हैं वे बोलने में सावधान होते हैं, संयम रखते हैं, बहुत ही अल्प बोलते हैं यानी जितना आवश्यक होता है उतना ही बोलते हैं, प्रासंगिक ही बोलते हैं। सज्जनों की इस विशेषता की आप तभी प्रशंसा करोगे जब आपको प्रस्तुत और मितपरिमित बोलना अच्छा लगेगा। सभा में से : यदि प्रस्तुत और परिमित बोलना पसन्द है, तो फिर वह वैसा ही बोलेगा न? ___ महाराजश्री : ऐसा नियम नहीं है! पसंद है प्रासंगिक और परिमित बोलना, फिर भी आदत पड़ गई है अप्रासंगिक और बहत बोलने की आदत से लाचार मनुष्य, जो ठीक नहीं मानता हो, वैसा आचरण कर लेता है। जब परिणाम अच्छा नहीं आता है, बुरा परिणाम आता है तब जाकर उसे अपनी गल्ती महसूस होती है। परन्तु यदि यह व्यक्ति, सज्जनों के प्रास्तविक और परिमित बोलने की प्रशंसा करता रहे तो आदत से मुक्त हो सकता है। ___ कुछ भाषण करनेवाले लोग भी प्रसंग से, विषय से विपरीत बोलने लगते हैं तब श्रोता 'बोर' हो जाते हैं, भाषण का कोई अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता है। असंबद्ध प्रलाप श्रोताओं को विषयबोध नहीं करा सकता। भाषण का विषय देश की आर्थिक समस्या का...और भाषण दे मारे संतति-नियमन पर! विषय हो आत्मविकास का, भाषण कर दे आर्थिक विकास का! ऐसे वक्ताओं का भाषण लोकप्रिय नहीं बन सकता। वैसे बातूनी लोग सफल नहीं होते : अध्यापक को पढ़ाना हो इतिहास, वर्ग इतिहास का हो और पढ़ाने लगे नागरिक शास्त्र! पढ़ने का विषय चलता हो गणित का और चला जाय विज्ञान के विषय में! ऐसे अध्यापक अध्यापनकार्य में निष्फल जाते हैं। दुकान लेकर बैठा हो कपड़े की और ग्राहक के साथ बातें करे सोने-चाँदी की! व्यवसाय करता हो दवाइयों का और ग्राहक के साथ बातें करे कपड़े की! क्या चलेगा उसका व्यापार? क्या पाएगा वह संपत्ति? ___ घर पर मेहमान आये हों आपकी लड़की को देखने और आप बातें शुरू कर दो आपके व्यवसाय की, आपके वैभव की तो क्या होगा? लड़की को देखे बिना ही रवाना हो जाएंगे न? एक लड़की बड़ी उम्र तक कुँवारी रह गई...चूकि उसका पिता हमेशा लड़कों के साथ और लड़के के भाइयोंपिताओं के साथ अप्रस्तुत बात ही किया करता था। एक मित्र ने जब उसका ध्यान आकर्षित किया तब जाकर काम बना! For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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