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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-३४ ११३ कुलपरंपरा यानी श्रेष्ठ कुलपरंपरा...।' अपनी श्रेष्ठता के गीत स्वयं गाने जैसी मूर्खता दूसरी है क्या? परन्तु मन को ऐसी मूर्खता भी पसंद आ जाती है! कभी मन बड़ा बुद्धिमान बनता है तो कभी मूर्खता भी कर देता है। मानव-मन को जाननेवाले ज्ञानी पुरुषों ने इसलिए स्त्री-पुरुष के सम्बन्ध में कुल-वंश की समानता देखने की आवश्यकता समझी। यदि आप लोग ज्ञानी पुरुषों का मार्गदर्शन लेकर जीवन जियो तो आपका जीवन अनेक अनर्थों से बच जाय। शील की समानता : ___ शादी में स्त्री-पुरुष की दूसरी समानता देखने की है शील की। 'शील' का अर्थ यहाँ एक पत्नीव्रत या एक पतिव्रत नहीं किया गया है। अपने यहाँ शील का यह अर्थ विशेष प्रचलित है। शील का अर्थ ब्रह्मचर्य भी किया जाता है। यहाँ वह अर्थ भी नहीं लिया गया है। यहाँ शील का अर्थ है मांस-भक्षण का त्याग, मद्यपान का त्याग, रात्रिभोजन का त्याग । __ पति-पत्नी के जीवन में यह समानता होना काफी आवश्यक है। दोनों के जीवन में मांस-भक्षण का, मद्यपान का और रात्रिभोजन का त्याग होना चाहिए। आर्यदेश की संस्कृति और सभ्यता के अनुसार भी ये तीन पाप नहीं होने चाहिए। फिर भी मान लो कि किसी कुल या वंश में मांसाहार होता है और आपके परिवार में मांसाहार पूर्णतया वर्ण्य है तो आपको उस परिवार के साथ शादी का संबंध नहीं बाँधना चाहिए। आपके घर में शराब वर्ण्य है तो शराब पीनेवाले परिवार के साथ शादी का संबंध नहीं करना चाहिए। वैसे आपके घर में रात्रिभोजन नहीं होता है तो रात्रिभोजन करनेवालों के साथ शादी का संबंध नहीं रचाना चाहिए। एक दुःखद घटना : ___ एक शहर में थोड़े वर्ष पूर्व ही एक करुण घटना बनी थी। एक वणिक परिवार की लड़की जो मांसाहार और मद्यपान को सर्वथा वर्ण्य मानती थी और कभी भी उसने अपने जीवन में मांसाहार किया नहीं था, मद्यपान किया हुआ नहीं था, उस लड़की ने एक सिन्धी लड़के के साथ शादी कर ली, मातापिता के विरोध को उसने नहीं माना। हालाँकि लड़की ने उस सिन्धी लड़के को शादी से पूर्व कह दिया था कि तुझे मांसाहार छोड़ना होगा। लड़के ने बात को स्वीकार भी किया था। परन्तु शादी के बाद कुछ समय बीता और लड़के ने मांसाहार करना शुरू कर दिया! लड़की को मालूम पड़ गया। उसने विरोध For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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