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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- ३४ ११२ यह तुम्हारे बाप का घर नहीं है, हमारा तो तीन पीढ़ी से राजघराने के साथ संबंध है, यहाँ तो बड़े-बड़े लोग आया करते हैं, इसलिए यहाँ ढंग से रहो.... बोलने का खयाल करो।' बस, फिर तो बात-बात में सास पुत्रवधू को यह बताती रहती है कि हमारी वंशपरंपरा उच्च है और तुम्हारे पिता की वंशपरंपरा ही है! कभी कभी ससुरजी भी अपने पिता की, पितामह की कथा इस प्रकार पुत्रवधू को बताते हैं कि पुत्रवधू के स्वमान को आघात लगे। कभी कभी उसका पति भी उसका तिरस्कार कर देता है : 'तूंने तेरे पिता के घर क्या देखा है? क्या है तेरे पिता के घर ? हमारा खानदान कहाँ, तुम्हारा कहाँ....?' उस लड़की का घर में कोई मान-सम्मान न रहा, सब लोग उसको हीन दृष्टि से देखते थे। मानसिक त्रास इतना असह्य हो गया कि एक दिन उसने अग्निस्नान कर लिया । सभा में से : आजकल तो इस प्रकार शादी करनेवाले शादी के बाद अलग ही रहने लगते हैं, सास और ससुर से अलग! महाराजश्री : सास और ससुर से अलग रहते होंगे, परन्तु पति - पत्नी तो साथ रहते हैं न? यदि पति के दिमाग पर अपने वंश का गौरव छाया हुआ होगा तो? कभी न कभी अपने कुल वंश की उच्चता के गुणगान वह करेगा ही? पत्नी के पितृपक्ष की निन्दा करेगा ही ! तब क्या होगा ? झगड़ा होगा या नहीं ? मनमुटाव होगा या नहीं ! और आज की 'क्वालिफाइड' पत्नी पति की ऐसी हरकतें सहन कर लेगी? 'क्वालिफाइड...' डिग्रीवाली पत्नियाँ ज्यादातर स्वमानी होगी ही! उनमें नम्रता और सहनशीलता आप शायद ही देखोगे । यदि पति-पत्नी दोनों अंग्रेजी डिग्रीवाले होंगे, दोनों स्वमानी होंगे, दोनों तेज-तर्रार दिमाग के होंगे तो सारा काम तमाम समझो ! एक-दूसरे का एक भी कटु शब्द, एक भी आक्षेप, एक भी कटाक्ष सहन नहीं करेंगे ! प्रेम की बातें हवा में उड़ जायेंगी! ‘डाइवर्स' लेने तैयार हो जायेंगे । जिस प्रकार पति का कुल उच्च हो और पत्नी का कुल मध्यम, तो पतिपत्नी के संबंध अच्छे नहीं रह पाते, वैसे पत्नी का कुल वंश उच्च हो और पति का नीच हो या मध्यम हो, तो भी दोनों के संबंध बिगड़ते देर नहीं होगी । मनुष्य का मन बड़ा विचित्र है । मन के विचार बड़े परिवर्तनशील हैं। बहुत प्रेम करनेवाले पति को नीचा दिखानेवाली पत्नियाँ आपने देखी हैं? मैंने प्रायः देखी तो नहीं, सुनी अवश्य हैं। अपने पितृवंश की बात-बात में बिरुदावली गाती रहती हैं। 'मेरे पिताजी के वंश में ऐसे ऐसे महापुरुष हुए, हमारी For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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