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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-२ २७ जाओ!' आप उसको घर में खेलने दो थोड़े दिन । आवारा मित्र घर में आयेंगे नहीं। आप उन आवारा मित्रों को घर में मत आने दो। लड़का भले घर में खेले, आँगन में खेले। फिर आप उसे थोड़ा समय पढ़ने के लिए कहो। वह मान जाएगा। धीरे-धीरे पढ़ाई में मन लग जाएगा। फिर अपने आप खेलना छूट जाएगा और पढ़ाई करने लग जाएगा। धर्मक्रिया को अमृतक्रिया बनाइए : पापों के विषय में ऐसा ही है। मनुष्य धनप्रिय है, काम-भोगप्रिय है, वह पापों के पास जाता है-हिंसा करता है, झूठ बोलता है, चोरी करता है, दुराचार-व्यभिचार सेवन करता है। यदि ऐसे मनुष्य को धर्म के मार्ग पर लाना है तो उसको कहो - 'भाई, तुझे धन चाहिए? तुझे कामभोग चाहिए? क्यों दुनिया में भटकता है? आ जा इधर, धर्म-आराधना कर, धर्म से तुझे धन भी मिलेगा और भोगसुख भी मिलेंगे।' जब वह धर्ममार्ग पर आये-भले वह धनेच्छा से और भोगेच्छा से धर्म करे, तत्काल आप उसको मत छेड़ो। थोड़ा समय जाने दो। फिर उसको प्रेम से समझाओ कि 'धनेच्छा और भोगेच्छा अच्छी नहीं है। ऐसी इच्छाएँ करना पाप है। मानवजीवन में तो मुक्ति पाने की ही इच्छा होनी चाहिए। धर्मपुरुषार्थ से मोक्ष ही पाना है। धनेच्छा से भोगेच्छा से धर्मक्रिया विषक्रिया हो जाती है। अमृतक्रिया नहीं होती।' ___ यदि वह मनुष्य बुद्धिमान होगा, तो आपकी बात समझेगा और धर्मक्रिया को अमृत क्रिया बनाएगा। यदि मूर्ख होगा, तो भी धर्मक्रिया तो करेगा न? पापक्रियाओं से तो दूर रहेगा न? उसको भी सुख तो मिलेंगे ही। भले अल्पकालीन सुख मिलो, घटिया 'क्वोलिटी' के सुख मिलो। किया है धर्मपुरुषार्थ, किसी भी दृष्टि से किया हो, उसको धन का सुख, कामभोग का सुख मिलेगा जरूर! हम सोच रहे हैं धर्म के प्रभाव के विषय में, धर्म के फल के विषय में | भौतिक या आत्मिक, सुख मिलेगा धर्म से ही। धर्म से ही मिलेगा सुख! धर्म से सुख मिलता ही है। धर्म जिस प्रकार धन और भोगसुख देता है, उसी प्रकार स्वर्ग सुख और मोक्षसुख भी देता है। इस विषय में आगे विवेचन करूँगा। आज, बस इतना ही। For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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