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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६ प्रवचन-२ है। हमारी दृष्टि कामप्रधान है यानी भोगप्रधान है तो हम सोचेंगे : 'आचार्यश्री ने कहा कि धर्म से भोगसुख मिलते हैं, मुझे भोगसुख चाहिए, मैं धर्म करूँगा तो मुझे भोगसुख मिलेंगे!' हमारी दृष्टि मोक्षप्रधान होगी तो सोचेंगे : 'आचार्यश्री ने कहा है कि धर्म मोक्ष देता है। मुझे तो मोक्ष-मुक्ति ही चाहिए, मैं धर्मपुरुषार्थ करूँगा तो मुझे मोक्ष मिलेगा।' संसार में सभी प्रकार के जीव होते हैं। अर्थप्रधान, भोगप्रधान और मोक्षप्रधानमुख्य रूप से तीन प्रकार के जीव होते हैं। ग्रन्थकार आचार्य इन तीनों प्रकार के जीवों को लक्ष्य बनाकर कहते हैं : तुम्हें जो भी चाहिए, धर्म देगा! पाप नहीं देगा। धन पाप से अर्थात् हिंसा करने से, झूठ बोलने से या चोरी करने से नहीं मिलेगा, यह बात समझ लो। धन भी धर्म से ही मिलेगा! बिना माँगे मिलेगा। संसार के सारे के सारे श्रेष्ठ भोगसुख भी धर्म से ही मिलेंगे, पापों से नहीं मिलेंगे। यदि हिंसा वगैरह पापों से अर्थ और काम मिलते होते तो दुनिया में पाप करनेवाले सभी धनवान होते, सभी को भोगसुख मिले हुए होते। परन्तु ऐसा दिखता है? आप दुनिया में देखते हो न? दुनिया में पाप करनेवाले ज्यादा हैं कि धर्म करनेवाले? सभा में से : पाप करने वाले ही ज्यादा हैं। महाराजश्री : यदि पापों से धन मिलता होता तो धनवान ज्यादा होने चाहिए संसार में! संसार में धनवान ज्यादा हैं कि गरीब? सभा में से : गरीब ज्यादा हैं! धनवान थोड़े ही हैं। महाराजश्री : इसका अर्थ यह होता है कि संपत्ति और भोगसुख पापों से नहीं मिलते, धर्म से ही मिलते हैं। सर्वप्रथम आपको पापों का त्याग करना होगा। धर्ममार्ग पर आना होगा। धन चाहिए या भोगसुख चाहिए, आप पापों को छोड़कर धर्ममार्ग पर आ जाइए। इससे आपकी पाप-प्रवृत्ति समाप्त होगी। फिर समाप्त करनी होगी पापवृत्ति । धनेच्छा और भोगेच्छा पापवृत्ति है। धर्ममार्ग पर आने से सद्गुरुओं के समागम से पापवृत्ति भी नष्ट हो जायेगी। आपका लड़का है, पढ़ाई नहीं करता है, दोस्तों के साथ दिनभर खेलता रहता है। आप उसको पढ़ाना चाहते हैं, क्या करेंगे? आप उसे पढ़ाई की महत्ता समझायेंगे और खेलने की बुराई करेंगे, तो बच्चे के दिमाग में बात नहीं अँचेगी। वह आपकी बात नहीं मानेगा। आपको सर्वप्रथम उसे बाहर जाने से रोकना होगा। उसको कहोगे कि 'खेलना हो तो घर में खेलो, बाहर मत For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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