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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org www प्रवचन- ३ स्वर्ग और नरक निरो कल्पना नहीं है, अपितु वास्तविकता है। हम जिसे नहीं देख सकते या समझ नहीं सकते, इसका अर्थ यह नहीं होता कि हम उसका अस्तित्व ही नहीं मानें! * जो वस्तु होती है उसीको मनाई को जाती है। 'नरक' शब्द तभी बोला जाता है जबकि नरक हो! Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * विज्ञान के 'परा मनोविज्ञान' ने पुनर्जन्म के सिद्धान्त को प्रयोगसिद्ध करके आत्मा के अस्तित्व को स्वीकारा है। ● मजे से पाप करना है और सुख चाहिए? कभी नहीं मिल सकता! सुख चाहिए तो पापों का त्याग करना होगा। ● जीवराज सेठ को बाहरी धर्मक्रियाओं को देखकर नारदजी जैसे देवर्षि भी खिंच गए। जिन्हें मोक्ष चाहिए हो नहीं, उन्हें खुद भगवान भी मोक्ष में नहीं ले जा सकते! प्रवचन : धनदो धनार्थिनां प्रोक्तः कामिनां सर्वकामदः । धर्म एवापवर्गस्य पारम्पर्येण साधकः ।। २८ DOW धर्मतत्त्व का फल बताते हुए याकिनीमहत्तरासुनु आचार्यश्री हरिभद्रसूरिजी फरमाते हैं : For Private And Personal Use Only TEAC इस ‘धर्मबिन्दु' ग्रन्थ की रचना आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी ने की है और इस ग्रन्थ पर टीका की रचना आचार्यश्री मुनिचन्द्रसूरिजी ने की है। ये दोनों महान आचार्य जिनशासन के, जिनदर्शन के प्रकृष्ट प्रज्ञावंत ज्योतिर्धर आचार्य हो गए। जब ग्रन्थकार ने धर्म का स्वरूप, धर्म की परिभाषा पहले नहीं बताते हुए पहले धर्म का प्रभाव, धर्म का फल बताया; तब टीकाकार ने इस पद्धति को सुयोग्य सिद्ध करते हुए कितना अच्छा तर्क दिया! उन्होंने कहा : 'फलप्रधानाः प्रारम्भा मतिमतां भवन्ति ।' उन्होंने बुद्धिमान मनुष्यों की ओर देखा । उनका मनोविश्लेषण किया । बुद्धिमान मनुष्य कोई भी कार्य करने से पूर्व यह सोचेगा कि 'इसका फल क्या?' फलरहित निरर्थक प्रवृत्ति बुद्धिमान मनुष्य नहीं
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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