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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-९ १२१ संभव हो सकता है। किसी के लिहाज में आकर अथवा दबाव में आकर व्रत ग्रहण करनेवाले ज्यादातर व्रतपालन नहीं कर सकते। इसलिए दूसरों को जो व्रत देना हो, उन्हें उस व्रत की महत्ता समझाइए, व्रत ग्रहण करने का शुभ भाव जागृत करिए। शुभ भाव जागृत करने में जल्दबाजी नहीं करें। व्रतपालन करने का विश्वास पैदा करें। सुदृढ़ विश्वास उत्पन्न करें। पेथड़शाह की पत्नी भी साथ-साथ व्रत लेती है : मानना पड़ेगा कि पेथड़शाह के शुभ भावों का प्रभाव उनकी धर्मपत्नी पर पड़ा। पथमिणी ने कहा : 'नाथ! आपकी भावना उत्तम है। मैं भी ब्रह्मचर्य-व्रत ग्रहण करना पसंद करती हूँ| आप अपनी पवित्र भावना सफल करें। आप सोचो, पत्नी की ऐसी बात सुनकर महामंत्री को कितना हर्ष हुआ होगा? कितनी प्रसन्नता हुई होगी? पथमिणी की प्रसन्नता का तो पूछना ही क्या! पति की प्रसन्नता में ही उसकी प्रसन्नता समाई हुई थी। पति-पत्नी दोनों ने ब्रह्मचर्यव्रत ग्रहण करने का दृढ़ संकल्प कर लिया। बड़ी स्वाभाविकता से व्रतपालन कैसे हो, उस दिशा में चिन्तन-मनन करने लगे। ब्रह्मचारी की जीवनपद्धति कैसी होनी चाहिए, जीवनव्यवहार कैसा होना चाहिए, इत्यादि विषय में ज्ञानी पुरुषों से मार्गदर्शन लेने लगे। ३२ वर्ष की युवावस्था में ब्रह्मचर्य जैसा व्रत ग्रहण करना मामूली बात नहीं है। पेथड़शाह के जीवनचरित्र को पढ़ते हुए ऐसा लगता है कि उन महापुरुष का समग्र जीवन धर्ममय होगा। जीवन की प्रत्येक क्रिया धर्मरंग से रंगी हुई होगी। राजा के साथ, प्रजा के साथ और अपने परिवार के साथ, सबके साथ उनका व्यवहार कितना औचित्यपूर्ण था! क्या आप लोग ऐसा जीवन नहीं बना सकते? यदि जैन संघ के सदस्य परिवारों का ऐसा जीवन बन जाय तो राष्ट्र को श्रेष्ठ आदर्श मिल सकता है। अन्य समाजों के परिवारों को तो इतना स्पष्ट और सरल मार्गदर्शन नहीं मिल रहा है, आप लोगों को मिल रहा है, आप इसका महत्त्व समझें और जीवन-परिवर्तन का संकल्प करें। करोगे संकल्प? सभा में से : यहाँ तो हो जाता है संकल्प, परन्तु घर जाते हैं, तो जैसे थे वैसे बन जाते हैं। ___ महाराजश्री : इसको संकल्प नहीं कहते, यह तो उफान है! संकल्प तो कार्यसिद्धि तक ले जाता है। संकल्प आत्मसाक्षी होता है। यहाँ आपका मन जो तैयार हो जाता है वह तो मेरे शब्दों का प्रभाव है। मेरी बातें जब आपकी For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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