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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-९ १२२ बातें बन जाएँगी तब परिवर्तन का चक्र घूमने लगेगा | मेरी बातें आपके दिलदिमाग पर छा जाएँगी तब परिवर्तन स्वतः होने लगेगा | मुझे तो आपके जीवन की तमाम प्रवृत्तियों में परिवर्तन देखना है। खाना-पीना, चलना-फिरना, बोलनाहँसना, सभी प्रवृत्ति पर धार्मिकता की छाया पड़नी चाहिए। श्रावक जीवन न सही, सद्गृहस्थ का जीवन तो बनना ही चाहिए | जैन का जीवन तो उच्चस्तरीय जीवन होता है, वहाँ तक पहुँचने के लिए सद्गृहस्थ बनना ही पड़ेगा। सद्गृहस्थ बने बिना श्रावक बनने जाओगे तो डूब जाओगे! जैन धर्म की निंदा करवाओगे। इसलिए कहता हूँ कि सद्गृहस्थ का औचित्य समझो। पहले एक समय था कि जब सद्गृहस्थ बनने की शिक्षा माता-पिता की ओर से और अध्यापकों से मिल जाती थी, आज नहीं मिलती है। इसलिए यह शिक्षा भी आज धर्मगुरु को देनी पड़ती है। स्वयं के जीवनदृष्टा बनो : आप दृढ़ संकल्प करो- 'मुझे जीवन-परिवर्तन करना ही है। आर्यदेश का सद्गृहस्थ बनना है।' हाँ, एक बात है, यदि आपको अपना वर्तमान जीवन अच्छा नहीं लगेगा तो ही आप परिवर्तन का संकल्प कर पाओगे। वर्तमान जीवन का शान्त चित्त से अवलोकन करो। जीवन की प्रत्येक प्रवृत्ति को दृष्टा बनकर देखो। आप देखो कि जीवनप्रवाह गंगाप्रवाह जैसा निर्मल बह रहा है या गटर जैसा मलिन? __ सभा में से : गटर जैसा गंदा प्रवाह बह रहा है...। महाराजश्री : मुझे खुश करने के लिए कहते हो? यदि आप आत्मनिरीक्षण करके कहोगे कि गंगा जैसा निर्मल जीवनप्रवाह बह रहा है, तो भी मैं खुशी का अनुभव करूँगा। यदि आपको लगे कि जीवनप्रवाह गंदा है तो शुद्धिकरण करना होगा। निराश होकर गटर का जीवन व्यतीत करने की आवश्यकता नहीं है। उत्साह से, उमंग से शुद्धिकरण का कार्य शुरू करना चाहिए। अर्थप्रधान और कामप्रधान वर्तमान युग में आपको पूर्ण शक्ति से शुद्धि-प्रयोग करने होंगे। इस कार्य में 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ आपको अच्छा मार्गदर्शन दे सकता है। मनुष्य के जीवन की एक-एक प्रवृत्ति लेकर इस ग्रन्थ में सुचारू मार्गदर्शन दिया गया है। परन्तु मूल बात मत भूलें कि जीवन-परिवर्तन का आपका स्वयं का दृढ़ संकल्प अनिवार्य है। इसके बिना हम लोग कुछ भी नहीं कर सकते। विद्यार्थी का पढ़ाई करने का संकल्प होता है तो अध्यापक अध्यापन कर सकता है। अध्ययन में अच्छा सहयोग दे सकता है। For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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