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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२० प्रवचन-९ ___ महामंत्री की कितनी गंभीर दृष्टि है! जब तक पत्नी की ब्रह्मचर्य-व्रत धारण करने की भावना जागृत न हो तब तक वे ब्रह्मचर्य-व्रत धारण नहीं करना चाहते। बिना व्रत धारण किए भले वे मैथुन का त्याग करते हों, परन्तु पत्नी की संमति के बिना व्रत धारण नहीं करना चाहते। पत्नी को ऐसा भी नहीं कहते कि 'मुझे ब्रह्मचर्य-व्रत लेना है, तेरी इच्छा हो तो तु भी ले ले, अन्यथा मैं तो लूँगा ही, तू तेरा जाने...।' इस प्रकार उपेक्षापूर्ण वचन नहीं सुनाते । ऐसी बात करते तो संभव है कि पथमिणी विरोधी विचारधारा में बह जाती। जिस धर्म-आराधना मै दूसरे स्वजन या मित्र वगैरह को जोड़ना हों, तो जोड़ने की प्रबल भावना चाहिए और जोड़ने का तरीका भी आना चाहिए। अच्छी भावना को व्यक्त भी अच्छे ढंग से करें : लड़का परमात्मा के मंदिर नहीं जाता हो, आप चाहते हैं कि उसको मंदिर जाना चाहिए, आपने दो-चार बार उसको प्रेरणा भी दी, फिर भी वह नहीं जाता है, तो आप क्या करते हो? कटु आलोचना करते हो न? 'नास्तिक है, उदंड है, मंदिर नहीं जाता, नरक में जाएगा...' ऐसे-ऐसे शब्द सुनाते हो न? क्या ऐसे शब्द सुनाने से लड़का मंदिर जाने लगेगा? आपका कहा मानेगा? क्या ऐसे शब्द सुनाने से लड़का मंदिर जाने लगेगा? आपका कहा मानेगा? इस प्रकार के व्यवहार से तो कई लड़के विद्रोही बन गए | माता-पिता हैं न? उनको अनुभव होगा | माता-पिता का अनुचित व्यवहार सन्तानों को धर्मविमुख कर देता है। भले माता-पिता की भावना अच्छी हो। सिद्धान्त जानना अलग बात है, प्रयोग करना अलग बात है। सिद्धान्त जाननेवाले सब लोग सही प्रयोग करें ही, ऐसा नियम नहीं है। 'हमारे हृदय में तो परिवार के हित की भावना है, उस भावना से कहते हैं।' ऐसा तर्क करते हो न? भावना अच्छी है परन्तु भावना की आपकी अभिव्यक्ति ठीक नहीं है। परिवार को आपकी अच्छी भावना की प्रतीति नहीं होती, क्योंकि प्रेरणा देने की पद्धति ठीक नहीं है। महामंत्री पेथड़शाह स्वयं ब्रह्मचर्य-व्रत धारण करना चाहते थे। वे यदि चाहते तो पत्नी को प्रेरणा देकर अथवा दबाव डालकर सहमत कर लेते और शीघ्र ही ब्रह्मचारी बन जाते! व्रत धारण कर लेना ही पर्याप्त नहीं है, धारण किए हुए व्रत का पालन करने की क्षमता चाहिए | ब्रह्मचर्य-व्रत का आजीवन पालन करना सरल बात नहीं है। यौवन में कामवासना का आवेग प्रबल होता है। उस आवेग पर संयम रखना मामूली बात नहीं है। मनुष्य का स्वतः हार्दिक संकल्प हो और व्रतपालन की अपनी क्षमता पर विश्वास हो, तभी व्रतपालन For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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