SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०७ प्रवचन-८ ध्यान के लिए स्मशान में कब जाया जाता है? पहले मकान में रातभर ध्यानस्थ खड़े रहने का अभ्यास किया जाय । वह सहज-स्वाभाविक होने के पश्चात् कड़ाके की सर्दी में भी निर्वस्त्र होकर मकान में ही रातभर ध्यानस्थ खड़ा रहने का । स्वयं का शरीर सर्दी सहजता से सहन कर सके, वहाँ तक यह अभ्यास करने का। फिर मकान के बाहर, द्वार पर रातभर खड़े रहने का और ध्यान लगाने का | चूहा, बिल्ली, कुत्ता वगैरह पशु काटे तो भी हिलने का नहीं, दूर खिसकने का नहीं। यहाँ भी सहजता से उपद्रवों से निर्भय होने के बाद, गली के नुक्कड़ पर जाकर रात्रि में कायोत्सर्ग ध्यान करने का | वहाँ कोई चोर, डाकू या चौकीदार वगैरह के उपद्रव हो तो भी निर्भयता से सहन करने का। कई दिनों तक इस प्रकार रात्रिध्यान करके फिर नगर के बाहर, नगर के प्रवेशद्वार के पास ध्यानस्थ दशा में रात्रि व्यतीत करने की। वहाँ तो जंगली पशुओं के उपद्रव भी हो सकते हैं। सर्प वगैरह जहरीले पशुओं का भी उपसर्ग हो सकता है। उस समय निर्भय और निष्प्रकंप रहने का अभ्यास किया जाए। इस अभ्यास में सफलता पाने के बाद शून्यगृहखंडहरों में जाकर रात्रि व्यतीत करने की होती है। रातभर खड़े रहने का, परमात्मध्यान में मन को लीन रखने का | खंडहरों में भी पशु-पक्षी के जो भी उपद्रव हो, विचलित हुए बिना सहन करने के होते हैं। भूत-पिशाच-व्यंतर आदि के उपद्रव भी हो सकते हैं। उस समय जरा भी भयभीत नहीं होने का । यहाँ खंडहरों में सफलता पाने के बाद ही स्मशान में जाकर कायोत्सर्ग-ध्यान करने का होता है। स्मशान में तो अनेक प्रकार के उपद्रव हो सकते हैं, परन्तु वहाँ भी साधक सिंह की तरह निर्भय रहे और आत्मध्यान में लीन बना रहे। ___ जिस प्रकार उपद्रव-उपसर्ग हो सकते हैं ऐसे स्थानों में, वैसे प्रलोभन भी आ सकते हैं। उस समय विरागी और अनासक्त बना रहना होता है | न राग न भय! इसको कहते हैं साधना! समझते हो साधनामार्ग को? ऐसे ही राग-द्वेष और भय के साथ घर में बैठे बैठे, आपको मोक्ष मिल जाएगा, क्या? साधनामार्ग का मार्गदर्शन लिए बिना, जैसे-तैसे साधना करने से सिद्धि मिल जाएगी? ध्यान रखना, जो आराधना-साधना करनी हो, उस आराधना के विशेषज्ञ ज्ञानी पुरुषों से मार्गदर्शन लेकर ही आराधना करो। उसमें आप अपनी टांग मत अड़ाया करो। वह साध्वी अपनी गुरुणी की बात नहीं मानती है। उसके मनमें प्रबल इच्छा जाग्रत हो गयी थी 'स्मसान में जाकर रात्रि व्यतीत करूँ और आत्मध्यान करूँ।' For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy