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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८ प्रवचन-८ अकेली साध्वी : रात को गई स्मशान में : ध्यान करने की प्रबल इच्छा तो अच्छी है, परन्तु 'स्थान' का आग्रह बुरा है। द्रव्य, क्षेत्र और काल का ऐसा आग्रह नहीं होना चाहिए कि जिससे अपने रागद्वेष प्रबल हो जाएँ। धर्म-आराधना का रहस्य भूलकर, धर्म के नाम मनुष्य आज द्रव्य, क्षेत्र और काल को लेकर कितने झगड़े कर रहा है। कौन समझाए उन समझदारों को, ठेकेदारों को? द्रव्य, क्षेत्र और काल को लेकर मार्गदर्शन दिया जा सकता है, परन्तु झगड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है। जब उस साध्वी ने स्मशान में जाकर आत्मध्यान करने का आग्रह कर लिया, तब गुरुणी ने कहा : 'जहा सुक्खं' 'तुम्हें जैसे सुख हो, वैसे करो।' जैन श्रमण परंपरा का यह बहुत अच्छा सूत्र है 'जहा सुक्खं'! कितना अच्छा भाव है इस सूत्र का! 'समझाना था इतना समझा दिया, कहना था इतना कह दिया, फिर भी नहीं मानते हो, तो जैसे तुम्हें सुख हो वैसे करो!' अपनी बात नहीं माने, उसके लिए भी सुख की ही कामना! कितनी बढ़िया बात है! ऐसा नहीं कि 'मेरी बात नहीं मानता है तो दुःखी हो जाएगा। निकल यहाँ से, नर्क में जाएगा...' ऐसी कोई बकवास नहीं। कोई तनाव नहीं, कोई 'टेंशन' नहीं! अपना फर्ज अदा कर दिया, सच्चा मार्ग दिखा दिया, प्रेम से समझाया, तर्क से समझाया; फिर भी नहीं समझता है तो दूसरा क्या इलाज? अब तुम स्वयं समझ लो अपने सुख का मार्ग!' अपनी अच्छी बात भी दूसरा नहीं माने तब उसके अहित का विचार नहीं करना चाहिए। गुरुणी अपनी शिष्या से कहती है : 'जहा सुक्खं'! वह साध्वी ध्यानसाधना करने के लिए नगर बाहर के स्मशान में अकेली जाती है। साध्वी मानसिक पतन की खाई में : श्मशान नगर के बाहर, नजदीक ही था। अंधेरा हो गया था। स्मशान की भयानकता ने उसको भयभीत नहीं किया। उसने कायोत्सर्ग-ध्यान लगाया। वह खड़ी रही नगर की तरफ मुँह करके । जहाँ वह खड़ी थी, उसके सामने थोड़ी दूर एक मकान था। उस मकान में दीयों की रोशनी थी। मकान में से संगीत की मधुर आवाज़ आ रही थी। साध्वी ने अपना मन ध्यान में लगाने का प्रयत्न तो किया, पाँचों इंद्रियों को ध्येय में एकाग्र करने का प्रयत्न किया, फिर भी वह एकाग्र नहीं कर पाई मन को | उसके कान उस मधुर संगीत का श्रवण करने लगे! मन ने श्रवणेन्द्रिय को साथ दिया। ‘अच्छा संगीत है, कहाँ से आवाज आ रही है?' मन ने विकल्प किया। इस विकल्प ने चक्षुरिन्द्रिय को For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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