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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-८ १०६ है। साधु का संयमधर्म और साध्वी का संयमधर्म, व्रत समान होते हुए भी मर्यादाएँ भिन्न होती है। लक्ष होता है व्रतपालन का। उस साध्वी के मन में आया कि 'मैं भी साधुओं की तरह स्मशान में जाकर रात्रि के समय ध्यान लगाऊँ! साधु अकेला रात्रि में स्मशान जा सकता है तो साध्वी क्यों नहीं?' उसने अपनी गुरुणी से निवेदन क्या, अपने विचार कह सुनाये | गुरुणी ने कहा : 'देखो, हर बात में साधुओं का अनुकरण साध्वी नहीं कर सकती। तुम्हें ध्यान करना है तो अपने स्थान में, उपाश्रय में रहते हुए करो। रात्रि के समय साध्वी को बंद मकान में ही रहना चाहिए | यह मत भूलो कि अपना शरीर स्त्री का है।' गुरुणी की बात शिष्या को पसंद नहीं आई। अरुचि और आग्रह में आकर उसने कहा : 'मोक्षमार्ग एक है, फिर इसमें भेद क्यों? साधु और साध्वी की आचारमर्यादाओं में भेद करना उचित नहीं है। साध्वी भी कर्मक्षय करके मोक्ष में जा सकती है तो फिर साध्वी अकेली नहीं रह सकती, साध्वी रात्रि में मकान के बाहर नहीं रह सकती...इत्यादि नियम मुझे ठीक नहीं लगते।' भय एवं प्रलोभन : साधना में बाधक : साध्वी की बात शान्ति से सुनकर, मृदु भाषा में गुरुणी ने कहा : 'तपस्विनी, सर्वज्ञ परमात्मा के प्रति यदि श्रद्धा और विश्वास है तो ऐसे विचार नहीं करने चाहिए। एकदम गंभीरता से और गहनता से सोचोगी तो तुम्हें अवश्य प्रतीति होगी कि अपने लिए संयमपालन हेतु जो नियम बनाए व बताए गए हैं वे उचित हैं, सर्वथा उचित हैं। भय और प्रलोभन की वृत्ति पर संपूर्ण काबू पाए बिना स्मशान, शून्यगृह वगैरह स्थानों में साधु भी रात्रिनिवास नहीं कर सकते। भय और प्रलोभन की वृत्तियाँ कितनी गहरी हैं, यह समझनी चाहिए | साधना के मार्ग में ये दो वृत्तियाँ बाधक हैं। मनुष्य साधनामार्ग से क्यों फिसलता है? भय से अथवा प्रलोभन से।' ___ गुरुणी जो बात कह रही है अपनी शिष्या को, अति महत्त्वपूर्ण बात है। जिस किसी को मोक्षमार्ग की आराधना करनी है, कोई भी साधना करनी है तो उसे भय को जीतना पड़ेगा, प्रलोभनों से संपूर्णतया छुटकारा पाना होगा। स्मशान और शून्यगृह जैसे स्थानों में जाकर वे महात्मा रातभर ध्यान लगाकर खड़े रहते थे, जिन्होंने भय पर विजय पाई थी। जो निर्भय बने हुए थे। भय पर विजय पाने के रास्ते धर्मग्रन्थों में बताए हुए हैं। निर्भय बनने का क्रमिक मार्ग बताया गया है। For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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