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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-८ १०५ 'ऐसा परमात्मभक्त महामंत्री क्या कभी भी विश्वासघात जैसा घोर पाप कर सकता है? कभी नहीं। परमात्मपूजन में इतनी तल्लीनता विश्वासघात जैसा पाप करनेवाले को आ ही नहीं सकती। क्योंकि पापी का मन चंचल और अस्थिर होता है। यदि महामंत्री के चित्त में राज्यलोलुपता होती तो वह इतना निश्चल और स्थिर चित्त रख नहीं सकता था। इतनी प्रसन्नता और पवित्रता उसके मुख पर आलोकित हो नहीं सकती। मेरा सद्भाग्य है कि मुझे ऐसा गुणसमृद्ध महामंत्री मिल गया!' ईर्ष्या : इन्सान की बड़ी कमजोरी है : पेथड़शाह के परमात्मपूजन ने राजा को प्रभावित कर दिया। राजा के मन में पेथड़शाह के प्रति आदरभाव बढ़ गया। राजा ने उन ईर्ष्यालु राजपुरुषों को राजसेवा से निकाल दिया। पेथड़शाह को उन राजपुरुषों के प्रति भी विद्वेष नहीं हुआ। वे जानते थे मानव-सहज निर्बलता को । ईर्ष्या मानव-सहज कमजोरी है। दूसरों का उत्कर्ष देखकर प्रसन्न होनेवाले गुणवान पुरुष संसार में बहुत थोड़े होते हैं! इसमें भी यह तो राजनीति! राजनीति में तो एक-दूसरे का पैर खींचने की ही चालें चलती हैं। 'दूसरे को कुर्सी से उतारो और अपन बैठ जाओ!' यही चलता है न? प्रश्न : अनुष्ठान 'यथोदितं' करना चाहिए, वैसे करने से लाभ भी अच्छा मिलता है, परन्तु मानो कि 'यथोदितं' अनुष्ठान नहीं किया तो क्या नुकसान होता है? उत्तर : अवश्य! नुकसान होगा ही, इसमें पूछने का क्या? कोर्ट में वकील ने आपको जिस प्रकार बोलने को कहा हो, आप उस प्रकार नहीं बोलो और मन में आया सो बोल दिया, तो नुकसान होगा कि नहीं? मकान बाँधना है, इन्जीनियर ने जिस प्रकार कहा उस प्रकार नहीं बाँधा तो नुकसान होगा कि नहीं? द्रौपदी को पाँच पति क्यों मिले? : द्रौपदी के पाँच पति थे। पाँच पांडवों की पत्नी थी द्रौपदी। जानते हो न? क्यों पाँच पति करने पड़े द्रौपदी को? उसके पूर्वजन्म की एक घटना इसमें कारणभूत है। कारण के बिना कार्य नहीं बनता। कार्य है तो कारण होना ही चाहिए। द्रौपदी अपने पूर्वजन्म में साध्वी थी। उसने चारित्र्य-धर्म अंगीकार किया था। जिस प्रकार तीर्थंकरों ने, गणधरों ने चारित्र्यधर्म का पालन करने को कहा है, वैसे पालन करना चाहिए। चारित्र्य का अनुष्ठान तभी धर्म बनता For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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