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________________ वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी भगवान को हाजिर होना पडे। अनन्य भक्ति, वहाँ दे सके! वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी सते रहते हैं ?! प्रत्यक्ष सद्गुरु मिले और आत्मज्ञान मिले तब मोक्ष होगा। वर्ना नहीं मिले तो पुण्य तो भुगतेगा बेचारा। अच्छा कर्म तो बांधेगा। सच्चे दर्शन की रीत ! भगवान के मंदिर में या देरासर में जाकर सच्चे दर्शन करनेकी इच्छा हो तो मैं तुम्हें दर्शन करने की सच्ची रीत सिखलाऊँ। बोलिए, है किसी की इच्छा? हमें मोक्ष में जाना है, वहाँ पर महाविदेह क्षेत्र में जा सके उतना पुण्य चाहिए। यहाँ आप सीमंधर स्वामी का जितना करोगे, उतना सब आपका आ गया। बहुत हो गया। उसमें ऐसा नहीं कि यह कम है। उसमें आपने जो धारणा की हो (दान देने के लिए) वह सब करें तो हो गया सब। फिर उससे ज्यादा करने की जरूरत नहीं है। फिर दवाखाना बांधे कि ओर कुछ बांधे। वह सब अलग राह पर ले जाये। वह भी पुण्य सही मगर संसार में ही रखे और यह पुण्यानुबंधी पुण्य जो मोक्ष में जाने में हेल्प करें। यह अनंत अवतार का घाटा पूरा करने का है और एक ही अवतार में पूरा करना है। इसलिए वास्तव में मेरे पीछे पड़ना चाहिए पर वह तो तुम्हारी गुंजाईश नहीं। यह उनके साथ तार-संधान जोड देता हूँ, क्योंकि वहाँ जाना है। यहाँ से सीधा मोक्ष होनेवाला नहीं है। अभी एक अवतार बाक़ी रहेगा। उनके पास बैठने का है। इसलिये संधान करा देता हूँ और यह भगवान सारी दुनिया का कल्याण करेंगे। नाम देंगे, उनके दुःख जायेंगे। प्रश्नकर्ता : सीमंधर स्वामी का मंदिर इसलिए बनवाते हो कि फिर सभी उस रीति से आगे आ सके? दादाश्री : सीमंधर स्वामी का नाम लेंगे, तब से ही परिवर्तन होने लगेगा। प्रश्नकर्ता : सद्गुरू बगैर तो नहीं पहुँच पायेंगे न ? दादाश्री : सद्गुरू तो मोक्ष में जाने का साधन होते है। लेकिन इन लोगों के जो दुःख है वे सभी चले जायेंगे। पुण्य उदय में परिवर्तन होता रहेगा। इससे यह दुःख बेचारे को नहीं रहेगा। ये सभी कितने दुःखोमें फँ प्रश्नकर्ता : हाँ, है। सीखाओ, दादाजी। कल से ही उसके अनुसार दर्शन करने जायेंगे। दादाश्री : भगवान के देरासर में जाकर कहेना कि, 'हे वीतराग भगवान! आप मेरे भीतर ही बैठे है, पर मुझे इसकी पहचान नहीं हुई। इसलिए आपके दर्शन करता हूँ। मुझे यह ज्ञानी पुरुष दादा भगवान ने सीखाया है। इसलिए इस प्रकार आपके दर्शन करता हूँ। तो मुझे मेरी अपनी पहचान हो ऐसी आप कृपा करें।' जहाँ जाओ वहाँ इस प्रकार दर्शन करना। यह तो अलग अलग नाम दिये। रिलेटिवली (व्यवहारिक द्रष्टि से)अलगअलग है, रियली सभी भगवान एक ही है। एक को ही बस ! हमें एक तीर्थकर खुश हो जाये तो बहुत हो गया। एक घर जाने की जगह हो तो भी बहुत हो गया न! सभी घर कहाँ फिरे? और एक को पहुँचा तो सभी को पहुँच गया। और सभी को पहुँचानेवाले रह गये। हमारे लिए एक ही अच्छे, सीमंधर स्वामी। सर्वत्र पहुँच जाये। इसलिए सीमंधर स्वामी का ठीक से ध्यान लगाओ। 'प्रभु, सदा के लिए आपकी अनन्य शरण दीजिए।' ऐसा माँगो। प्रतिकृति से यही प्राप्त हो ! प्रश्नकर्ता : दादाजी, लेकिन सीमंधर स्वामी को होता होगा कि यह
SR No.009607
Book TitleVartaman Tirthankar Shri Simandhar Swami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2001
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size314 KB
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