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________________ वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी दादाजी मेरा काम कर रहे हैं। २३ दादाश्री : ऐसा नहीं, लेकिन तुम याद करो तो तुम्हें फल मिले। वहाँ वालों को (सिद्धो को ) तुम याद करो तो फल नहीं मिलता। ये देहधारी है। तुम एक अवतार में वहाँ जा सकते हो। वहाँ उनके शरीर को तुम हाथ से छु सकोगे। प्रश्नकर्ता: हाँ, दादाजी, हमें चान्स मिलेगा न ? दादाश्री : सब मिलेगा। क्यों नहीं मिले ? सीमंधर स्वामी के नाम की तो तुम आवाज़ देते हो । सीमंधर स्वामी के नाम के तुम नमस्कार करते हो। वहाँ तो जाना ही है हमें, इसलिए हम उनसे कहते है कि साहिब, आप भले वहाँ बैठे, हमें दिखते नहीं लेकिन यहाँ हम आपकी प्रतिकृति बनाकर भी हम आपके पास दर्शन करते रहते है। वह बारह फीट की मूर्ति रखकर भी हम उनके पास दर्शन करें, मुँह से याद करें लेकिन वह जीवित की प्रतिकृति हो तो ठीक रहें। जो गये उसके दस्तखत काम आते ही नहीं, उनकी प्रतिकृति बनाकर क्या लाभ ? यह तो काम आये। यह तो अरिहंत भगवान ! प्रश्नकर्ता: ये सभी दादा भगवान का कीर्तन करते है, तब आप भी कुछ बोलकर कीर्तन करते थे। वह किसका ? दादाश्री : मैं भी बोलता था। मैं दादा भगवान को नमस्कार करता हूँ | दादा भगवान की तीनसो साठ डिग्री है। मेरी तीनसो छप्पन डिग्री है। मेरी चार डिग्री कम है। इसलिए मैंने पहले बोलना शुरू किया। जिससे ये सब बोले । उनको भी कम है। प्रश्नकर्ता: आप जिन्हें दादा भगवान बुलाते है वे और ये सीमंधर स्वामी, उनमें वैसे सम्बन्ध क्या है ? दादाश्री : अहोहो ! वे तो एक ही है। लेकिन ये सीमंधर स्वामी २४ वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी दिखाने का कारण यह है कि अभी मैं देह के साथ हूँ इसलिए मुझे वहाँ जाना जरूरी है। क्योंकि जहाँ तक सीमंधर स्वामी के दर्शन नहीं होते वहाँ तक मुक्त नहीं होंगे। एक अवतार शेष रहेगा। मुक्ति तो यह मुक्त हुए हो उनके दर्शन से मिले। वैसे तो मुक्त मैं भी हुआ हूँ। लेकिन वे संपूर्ण मुक्त है। वे ऐसे हमारी तरह लोगों से ऐसा नहीं कहते कि ऐसे आना और वैसे आना। मैं तुम्हें ज्ञान दूँगा। ऐसी खटपट नहीं करते। 'सीमंधर स्वामी के असीम जय जयकार हो' बोल सकते है ? प्रश्नकर्ता : सीमंधर स्वामी को निश्चय से नमस्कार करता हूँ ऐसा जो बोलते है, तो निश्चय से ही बोलने का है कि व्यवहार से बोलने का है ? दादाश्री : निश्चय से और देह तो ऊँचा-नीचा हो, वह हमें देह के साथ लेना-देना नहीं है। प्रश्नकर्ता अर्थात् मैं सीमंधर स्वामी को निश्चय से नमस्कार करता हूँ, ऐसे जो बोलता हूँ, वह बराबर है न ? दादाश्री : बराबर है। व्यवहार से अर्थात् देह से। और इस नमस्कार विधि में जो अन्य बातें ह, वे सभी व्यवहार से है। अब यहाँ यह एक ही निश्चय से है। प्रश्नकर्ता: दादा भगवान का निश्चय से है । दादाश्री : हाँ, बस । अर्थात् वास्तव में यही तुम्हें निश्चय से नमस्कार करने चाहिए। और सब व्यवहार से सभी को नमस्कार करता हूँ। अब सीमंधर स्वामी को निश्चय से बोलो तो हर्ज नहीं। अच्छी बात कहलाये । वहाँ हम निश्चय लिखें तो सब जगह निश्चय लिखना पड़े ! प्रश्नकर्ता: हाँ, हाँ, ठीक है। दादाश्री : यह 'दादा भगवान' को अकेले निश्चय से किया।
SR No.009607
Book TitleVartaman Tirthankar Shri Simandhar Swami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2001
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size314 KB
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