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________________ १९ वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी जीवित वे है। अज्ञानियों के लिए यह जीवित है। ज्ञानी के लिए तो वह उतना ही जीवित है। क्योंकि उसमें जो भाग द्रश्य है, वह सब मूर्ति ही है। मूर्ति के अलावा ओर कुछ नहीं है। पाँच इन्द्रियगम्य है, उसमें अमूर्त नाम मात्र नहीं है। सभी मूर्त है और इस मूर्ति में तफावत नहीं है, डिफरन्स नहीं प्रश्नकर्ता : लेकिन यह यहाँ अमूर्त है और वहाँ मूर्तिमें अमूर्त नहीं है ऐसा मानते है न? दादाश्री : वहाँ अमूर्त नहीं है, पर उनकी प्रतिष्ठा की होती है। वह जैसा जैसा प्रतिष्ठा का बल। इनकी तो बात ही अलग है न! प्रकट की बात ही अलग। प्रकट नहीं होते तब क्या से क्या हो जाये ? प्रश्नकर्ता : और प्रकट होते ही नहीं, बहुत से समय तो। दादाश्री : और वह नहीं हो तो भूतकालीन तीर्थंकर, हमारे चौबीस तीर्थंकर तो है ही न। हितकारी ही वर्तमान तीर्थंकर! प्रश्नकर्ता : दादा, यह देरासर और यह सब बनता है, उसमें सच्चा भाव आत्मा का करने का है ? देरासर और अन्य सभी का क्या काम है ? वास्तव में तो हमें आत्मा का ही रास्ता खोजना है न ? दादाश्री : देरासर अवश्य बांधना चाहिए। जो गये है उनका देरासर बाँधने का क्या अर्थ है ? सीमंधर स्वामी हाजिर है तो वह हाजिर के दर्शन करें तो कल्याण हो जाये। वे प्रत्यक्ष है, इसलिए कल्याण हो जाये। ऐसा कुछ होगा तो इन लोगों का कल्याण होगा, निमित्त चाहिए। अर्थात् यह सीमंधर स्वामी का संकेत अवश्य फलदायी है। अगर हमारे लोगों ने ज्ञान नहीं लिया हो और वहाँ सीमंधर स्वामी के दर्शन करे तो भी फल है उसमें, इसलिए यह सब बांधने का होता है वर्ना हमारे यहाँ ऐसा होगा क्या ? हमें वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी यह सब शोभा भी नहीं देता। और ये तो जीवित तीर्थंकर है, इसलिए बात करते है। दूसरे भूतकालीन तीर्थंकरो की बात करने का अर्थ ही नहीं। हमें चाहिए उतने देरासर है ही। उनकी ज़रूरत है। हम उन्हें मना नहीं करते। क्योंकि वह मूर्तिपूजा है और भूतकालिन तीर्थंकरो की है। यह इच्छा है 'हमारी'! दुनिया में मतभेद कम कर देना है। मतभेद दूर होंगे, तब यह बात सच्ची समझते होंगे। ये मतभेद तो इतने सारे कर दिये है कि यह शिव की एकादशी और यह वैष्णव की एकादशी, एकादशियाँ भी अलग अलग। इसलिए मैं ने मंत्र साथ कर दिये है और देरासर अलग अलग रखें। क्योंकि बिलिफ(मान्यता) है एक प्रकार की। शिव में कृष्ण को मत घुसेडो। पर ये मंत्र है वे साथ में रखो। क्योंकि मन जो है वह हमेशा शांत होना चाहिए ना ? इन लोगों ने ये सभी मंत्र बाट लिए थे। वह सभी साथ मिलाकर मैं ऐसी प्रतिष्ठा करूँगा कि लोगों के सारे मतभेद आहिस्ता आहिस्ता मीट जाये। यह इच्छा है हमारी, दूसरी कोई इच्छा नहीं है। हिन्दुस्तान की यह स्थिति नहीं रहेनी चाहिए। जैन इस स्थिति में नहीं रहने चाहिए। सीमंधर स्वामी का देरासर वह मूर्ति का देरासर नहीं है ? वह अमूर्त का देरासर है। आरती सीमंधर स्वामी की। इस समय जो भगवान ब्रह्मांड में हाजिर है, उसकी आरती ये सभी करते है। वह दादा भगवान श्रु (माध्यम द्वारा) करते है और मैं वह आरती उनको पहुँचाता हूँ। मैं भी उनकी आरती करता हूँ। देढ़ लाख साल से भगवान हाजिर है, उन्हें पहुँचाता हूँ। आरती में सभी देवलोग हाजिर होते है। ज्ञानीपुरुष की आरती सीमंधर स्वामी को आखिर तक पहँचे। देवलोग क्या कहते है कि जहाँ परमहंसों की सभा हो वहाँ हम हाजिर होते हैं। हमारी आरती किसीभी मंदिर में गाये तो
SR No.009607
Book TitleVartaman Tirthankar Shri Simandhar Swami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2001
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size314 KB
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