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________________ २८ वाणी, व्यवहार में... कई बार ऐसा होता है या नहीं कि आपने दृढ़ निश्चय किया हो कि सास के सामने या पति के सामने नहीं बोलना है, फिर भी बोल लिया जाता है या नहीं? बोल लिया जाता है। वह क्या है? अपनी तो इच्छा नहीं थी। तब क्या पति की इच्छा थी कि पत्नी मुझे गाली दे? तब फिर कौन बुलवाता है। यह तो रिकॉर्ड बोलता है और टेप हो चकी रिकॉर्ड को कोई बाप भी बदल नहीं सकता। बहुत बार कोई मन में पक्का करके आया हो कि आज तो उसे ऐसा सुनाना है और वैसा कह दूंगा। और जब उसके पास जाता है और दूसरे दो-पाँच लोगों को देखता है, तो एक अक्षर भी बोले बिना वापिस आता है या नहीं? अरे, बोलने जाए पर जबान ही नहीं चलती। ऐसा होता है या नहीं? यदि तेरी सत्ता की वाणी हो, तो तू चाहे, वैसी ही वाणी निकले। पर वैसा होता है? कैसे होगा? यह विज्ञान इतना सुंदर है न कि किसी प्रकार से बाधक ही नहीं और झटपट हल ला दे ऐसा है। पर इस विज्ञान को लक्ष्य में रखे कि दादा ने कहा है कि वाणी मतलब बस रिकॉर्ड ही है, फिर कोई चाहे जैसा बोला हो या कोतवाल झिड़कता हो पर उसकी वाणी वह रिकॉर्ड ही है, वैसा फिट हो जाना चाहिए, तब फिर यह कोतवाल झिड़क रहा हो तो हमें असर नहीं करेगा। वाणी, व्यवहार में... मन में से वाणी की क़ीमत चली जाएगी। हमें तो कोई चाहे जैसा बोले न तो भी उसकी एक अक्षर भी क़ीमत नहीं है। मैं जानता हूँ कि वह बेचारा किस तरह बोल सकता है? वह खुद ही लद्र है न! और यह तो रिकॉर्ड बोल रहा है। वह तो लट्ट है, दया रखने जैसा है! प्रश्नकर्ता : 'यह लट्ट है' इतना उस समय लक्ष्य में नहीं रहता है। दादाश्री : नहीं, पहले तो 'वाणी रिकॉर्ड है' ऐसा नक्की करो। फिर 'यह बोलता है, वह 'व्यवस्थित' है। यह फाइल है, उसका समभाव से निकाल करना है।' यह सारा ज्ञान साथ-साथ हाज़िर रहे न तो हमें कुछ भी असर नहीं होगा। जो बोलता है वह 'व्यवस्थित' है न? और रिकॉर्ड ही बोलता है न? वह खुद नहीं बोलता न आज? इसलिए कोई व्यक्ति जोखिमदार है ही नहीं। और भगवान को वैसा दिखा है कि कोई जीव किसी प्रकार से जोखिमदार है ही नहीं। इसलिए कोई गनहगार है ही नहीं। वह भगवान ने देखा था। उस दृष्टि से भगवान मोक्ष में गए। और जगत् ने गुनहगार है ऐसा देखा, इसलिए जगत् में भटकते हैं। बस, इतना ही दृष्टि का फर्क है! प्रश्नकर्ता : हाँ, पर यह जो दृष्टि है वह अंदर फिट हो जाए, उसके लिए क्या पुरुषार्थ करना चाहिए? दादाश्री : पुरुषार्थ कुछ भी नहीं करना है। इसमें तो 'दादाजी' की यह बात बिलकुल सच है, उस पर उल्लास जैसे-जैसे आएगा, वैसे-वैसे अंदर फिट होता जाएगा। इसलिए अब ऐसा नक्की कर दो कि दादा ने कहा है. वैसा ही है कि यह वाणी टेपरिकॉर्ड ही है। अब उसे अनुभव में लो। वह धमकाता हो तो उस घड़ी हम अपने मन में हँसने लगें. ऐसा कछ करो। क्योंकि वास्तव में वाणी टेपरिकॉर्ड ही है और ऐसा आपको समझ में आ गया है। क्योंकि नहीं बोलना हो तो भी बोल लिया जाता है, तो फिर 'यह टेपरिकॉर्ड ही है', वह ज्ञान फिट कर दो। प्रश्नकर्ता : मानो कि सामनेवाले का टेपरिकॉर्ड बज रहा हो और कोई भी व्यक्ति बहुत अधिक बोलता हो तो भी हमें समझ जाना चाहिए कि यह रिकॉर्ड बोली। रिकॉर्ड को रिकॉर्ड समझें, तो हम लुढ़क नहीं पड़ेंगे। नहीं तो तन्मयाकार हो जाएँ तो क्या होगा? __ अपने ज्ञान में यह 'वाणी रिकॉर्ड है' वह एक चाबी है और उसमें हमें गप्प नहीं मारनी है। वह है ही रिकॉर्ड। और रिकॉर्ड मानकर यदि आज से आरंभ करो तो? तब फिर है कोई दु:ख? अपनी ऊँची जाति में लकड़ी लेकर मारामारी नहीं करते। यहाँ तो सब वाणी के ही धमाके! अब उसे जीत लेने के बाद रहा कुछ? इसलिए मैंने यह खुलासा किया कि वाणी रिकॉर्ड है। यह बाहर खुलासा करने का कारण क्या है? उसके कारण हमारे
SR No.009606
Book TitleVaani Vyvahaar Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size33 KB
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