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________________ वाणी, व्यवहार में... २५ यह जगत् प्रतिघोष के रूप में है। कुछ भी आए तो वह आपका ही परिणाम है। उसकी हंड्रेड परसेन्ट गारन्टी लिखकर देता हूँ । इसलिए हम उपकार ही मानते हैं। तो आपको भी उपकार मानना चाहिए न? ! और तब ही आपका मन बहुत अच्छा रहेगा। हाँ, उपकार नहीं मानो तो उसमें आपका पूरा अहंकार खड़ा होकर द्वेष परिणाम पाएगा। उसे क्या नुकसान होनेवाला है? आपने दिवाला निकाला। ५. वाणी, है ही टेपरिकॉर्ड वाणी की तो सारी झंझट है। वाणी के कारण ही तो यह सब भ्रांति जाती नहीं है। कहेगा कि 'यह मुझे गालियाँ देता है।' और इसलिए फिर बैर जाता ही नहीं न! प्रश्नकर्ता: इतने सारे झगड़े होते है, गालियाँ दें तो भी लोग मोह के कारण सारा भूल जाते हैं। और मुझे तो दस वर्ष पहले कहा हुआ हो तो भी लक्ष्य में रहता है। और फिर मैं उनके साथ नाता नहीं रखता हूँ। दादाश्री : पर मैं कुछ नाता तोड़ नहीं देता। हम जानते हैं कि इसकी नोंध (अत्यंत राग अथवा द्वेष सहित लम्बे समय तक याद रखना, नोट करना) रखने जैसी नहीं है। रेडियो बजता हो ऐसा मुझे लगता है। उल्टा अंदर मन में हँसना आता है। इसलिए मैंने खुल्ले आम पूरे वर्ल्ड को कहा है कि यह ओरिजिनल टेपरिकॉर्ड बज रहा है। ये सारे ही रेडियो हैं। कोई मुझे साबित कर दे कि 'यह टेपरिकॉर्ड नहीं है' तो यह पूरा ज्ञान ही गलत है। करुणा किसे कहा जाता है? सामनेवाले की मूर्खता पर प्रेम रखना, उसे । मूर्खता पर बैर रखे, वह तो पूरा जगत् रखता ही है। प्रश्नकर्ता: बोल रहे हों न, तब वैसा लगता नहीं है कि यह मूर्खता कर रहा है। दादाश्री : उस बेचारे के हाथ में सत्ता ही नहीं है। टेपरिकॉर्ड गाता रहता है। हमें तुरन्त पता चल जाता है कि यह टेपरिकॉर्ड है। जोखिमदारी २६ वाणी, व्यवहार में... समझता हो तो बोले नहीं न! और टेपरिकॉर्ड भी नहीं बजे । कोई हमें शब्द कहे कि, 'आप गधे हो, मूर्ख हो' वह हम लोगों को हिलाए नहीं। 'आपमें अक्कल नहीं है' ऐसा मुझे कहे तो, मैं कहूँ कि, 'उस बात को तू जान गया इतना अच्छा हुआ। मैं तो पहले से ही जानता हूँ तूने तो आज जाना।' तब फिर से कहूँ कि, 'अब दूसरी बात कर ।' तो निबेड़ा आएगा या नहीं आएगा? इस अक्कल को तौलने बैठें तो तराजू किसके वहाँ से लाएँ? बाट किसके वहाँ से लाएँ? वकील कहाँ से लाएँ? ! इससे तो हम कह दें कि, 'भाई, हाँ, अक्कल नहीं है, यह बात तो तूने आज जानी। हम तो पहले से ही जानते हैं। चल, आगे की बात कर अब ।' तो निबेड़ा आए इसमें । सामनेवाले की बात पकड़कर बैठने जैसा नहीं है और शब्द तो सारे टेपरिकॉर्ड बोलता है। और कारण ढूंढने से क्या हुआ है? यह कारण ढूंढने से ही जगत् खड़ा हुआ है। कारण किसीमें ढूंढना मत। यह तो 'व्यवस्थित' है। 'व्यवस्थित' से बाहर कोई कुछ बोलनेवाला नहीं है। यों ही बेकार ही उसके ऊपर आप जो मन में धारण करते हो न, वह आपकी भूल है। जगत् पूरा निर्दोष है। निर्दोष देखकर मैं आपको कहता हूँ कि निर्दोष है। किसलिए निर्दोष है जगत् ? शुद्धात्मा निर्दोष हैं या नहीं? तब दोषित क्या लगता है? यह पुद्गल । अब पुद्गल उदयकर्म के अधीन है, पूरी जिन्दगी। अब उदयकर्म में हो वैसा यह बोलता है, उसमें आप क्या करोगे फिर ?! देखो तो सही, इतना अच्छा दादा ने विज्ञान दिया है कि कभी भी झगड़ा ही नहीं हो। वाणी जड़ है, रिकॉर्ड ही है। यह टेपरिकॉर्ड बजता है, उसके पहले टेप में उतरता है या नहीं? उसी प्रकार इस वाणी की भी पूरी टेप उतर चुकी है। और उसे संयोग मिलते ही, जैसे पिन लगे और रिकॉर्ड शुरू हो जाती है, वैसे ही वाणी शुरू हो जाती है।
SR No.009606
Book TitleVaani Vyvahaar Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size33 KB
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