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________________ वाणी, व्यवहार में... वाणी, व्यवहार में... विनाशी चीज़ होती है, वह वस्तु इफेक्टिव होती है। अपना 'ज्ञान' मिलने के बाद चाहे जैसी वाणी हो तो वाणी इफेक्टिव नहीं होती। फिर भी अभी होता है उसका क्या कारण? पहले की अवस्थाएँ भूले नहीं हैं। बाकी इफेक्ट होता है, उसे आपने जाना कि सामनेवाले की वाणी है वह रिकॉर्ड स्वरूप है, और वह चंदूभाई को कह रहा है, 'आपको' नहीं कह रहा है। इसलिए किसी भी रास्ते 'आपको' असर नहीं करेगी। उसे कुछ ऐसा नहीं बोलना चाहिए, ऐसा उसके हाथ में नहीं है। उसके चाहे जैसे बोल से हमें टकराव नहीं होना चाहिए। वह धर्म है। हाँ। बोल तो चाहे जैसे हो सकते हैं। बोल की कोई ऐसी शर्त होती है कि वह बोले तो 'टकराव ही करना है?' और हमारे कारण सामनेवाले को अड़चन हो वैसा बोलना, वह सबसे बड़ा गुनाह है। उल्टे वैसा कोई बोला हो तो उसे दबा देना चाहिए, वह मनुष्य कहलाता है! उस समय हम कहें कि यह रिकॉर्ड बज रहा है। पर अंदर वापिस 'वह गलत है, वह ठीक नहीं है, ऐसा क्यों बोल रहा है?' वैसा रिएक्शन भी हो जाता है। दादाश्री : नहीं, पर ऐसा किसलिए होना चाहिए? यदि वह रिकॉर्ड ही बज रहा है, आप यदि जान गए हो कि यह रिकॉर्ड ही बज रहा है, तो फिर उसका असर ही नहीं होगा न?! प्रश्नकर्ता : पर खद निश्चित रूप से मानता है, सौ प्रतिशत मानता है कि यह रिकॉर्ड ही है, फिर भी वह रिएक्शन क्यों आता है? दादाश्री : ऐसा है कि वह रिकॉर्ड ही है, ऐसा रिकॉर्ड की तरह तो सारा आपने नक्की किया हुआ है। पर 'रिकॉर्ड' है, ऐसा एक्जेक्ट ज्ञान उस घड़ी रहना चाहिए। पर वह एकदम रिकॉर्ड के अनुसार रह नहीं सकता। क्योंकि अपना अहंकार उस घड़ी कूदता है। इसलिए फिर 'उसे' फिर 'हमें' समझाना चाहिए कि 'भाई, यह रिकॉर्ड बज रहा है। तू किसलिए शोर मचाता है?' ऐसा हम कहें तब फिर अंदर ठंडा पड़ जाता है। यह तो मेरी पच्चीस वर्ष की उम्र थी, तब की बात है। मेरे वहाँ एक आदमी आया। उस दिन मुझे रिकॉर्ड की खबर नहीं थी। वह मुझे बहुत ही खराब शब्द बोल गया, वह रिश्तेदार था। उस रिश्तेदार के साथ झगड़ा करके कहाँ जाए?! मैंने उनसे कहा, 'बैठिए न अब. बैठिए न. अब वह तो भूल हो गई होगी? कभी भूल हो जाती है अपनी।' फिर चाय पिलाकर उन्हें शांत किया। फिर वे मुझे कहते हैं, 'मैं जा रहा हूँ अब।' तब मैंने कहा, 'वह पोटली लेते जाओ आपकी। यह जो आपने मुझे प्रसाद दिया था, वह मैंने चखा नहीं है। क्योंकि बिना तौल का था। वह तो मुझसे लिया नहीं जाएगा न। मुझे तो तौला हुआ माल हो तो काम का। बिना तौला हुआ माल हम लेते नहीं हैं। इसलिए आपका माल आप लेते जाओ।' इससे वे शांत हो गए। ___ शब्द तो ठंडक भी देते हैं और सुलगाते भी हैं। इसलिए इफेक्टिव हैं, और इफेक्टिव सभी वस्तुएँ निश्चेतन होती हैं। चेतन इफेक्टिव नहीं होता। वाणी बोले उसमें हर्ज नहीं है। वह तो कोडवर्ड है। वह फटता है और बोलता रहता है, उसका हमें रक्षण नहीं करना चाहिए। वाणी बोलो उसमें हर्ज नहीं है, पर 'हम सच्चे हैं' इस तरह उसका रक्षण नहीं होना चाहिए। खुद की बात का रक्षण करना, वही सबसे बड़ी हिंसा है। खद की बात सच्ची ही है, वैसा सामनेवाले के मन में बिठाने का प्रयत्न करना ही हिंसा है। _ 'हम सच्चे हैं, वही रक्षण कहलाता है और रक्षण नहीं हो तो कुछ भी नहीं है। गोले सारे फूट जाएँगे और किसीको चोट नहीं लगेगी बहुत। अहंकार का रक्षण करें, उससे बहुत चोट लगती है। प्रश्नकर्ता : आंतरिक स्थिति में, यानी अंतरविज्ञान में वह बोलना किस तरह होता है और बोलना बंद किस तरह होता है? दादाश्री : साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स हैं सारे। सामनेवाले को जितना देना हो, उतना निकलेगा हमारे लिए, और नहीं देना
SR No.009606
Book TitleVaani Vyvahaar Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size33 KB
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