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________________ सर्व दुःखों से मुक्ति सर्व दुःखों से मुक्ति दादाश्री : वो तो पूर्वजन्म की लेन-देन है, दूसरा कुछ है नहीं, कोई संबंध ही नहीं है। कोई real Father भी नहीं है और कोई real लडका भी नहीं। वो तो सब relative है। real लडका हो तो Father जब मर जाता है, तो लडके को भी उसके साथ जाना चाहिये। मगर कोई जाता नहीं उनके साथ, ये तो सब relative है। सिर्फ हिसाब ही है। उसका थोड़ा दुःख होता है, मगर इतना ज्यादा दु:ख नहीं होना चाहिये। आप रोते हो तो भगवान को बूरा लगता है। आज रो रहा है, कल रोयेगा, परसो रोयेगा अगर कितना भी रोयेगा तो भी एक दिन रोना तो बंध करना ही पड़ेगा न?! इसमें क्या फायदा? घर में पाँच आदमी इक्टठे होते है, वो सबका हिसाब ही है मात्र। दूसरा कोई संबंध नहीं। व्यापारी और ग्राहक के जैसे संबंध है। दूसरा कोई संबंध है नहीं। ये तो आपने संबंध बनाया है कि, 'ये हमारी mother है। ये हमारी wife है।' वो सब विकल्प है। ये तो खाली adjustment लिया है आपने। सब सब का हिसाब लेने के लिए जमा हुए है। जिसका हिसाब पूरा हो गया, वो चला जाता है। Father भी चले जाते है। सच्चा लडका कभी आपने देखा है? जो मर गया, वो आपका सच्चा लडका था? प्रश्नकर्ता : भौतिक देह में ऐसे कह सकते है कि वो सच्चा था। जगत चलता है। प्रश्नकर्ता : वो ऋणानुबंध क्या है? कैसे होता है? दादाश्री : आपका और आपके लडके का जो व्यापार चल रहा है, उसमें आप अतिरेक करते हो, इससे फिर ऋणानुबंध शुरु हो जाता है। साधारण व्यवहार हो तो कुछ हर्ज नहीं है। आपने लडके को गाली दिया, तो वो भी तय करता है कि, 'मैं भी उनको मार दें।' इससे सब दूसरे जन्म में इक्टठे होते है और जो दिया था, वो फिर वापस आता है। जो लिया था, वो ही वापस देता है। बस, वो ही धंधा है। प्रश्नकर्ता : कोई बाईस साल का या चोबीस साल का होकर लडका मर जाये और दुःख पहोंचाकर जाये तो वह कौन से कर्म का फल है? दादाश्री : ये दुनिया ऐसी है, आप दूसरों को दुःख दोगे तो लोग आपको दुःख देंगे। आप दूसरों को सुख दोगे तो लोग आपको सुख देंगे। ये सब ऐसी ही व्यवहार की बात है। जैसा आप करेंगे, उसका ही बदला मिलता है। प्रश्नकर्ता : मगर ये तो छोटा बच्चा था, निर्दोष था, मासूम था। दादाश्री : वो तो आपका जो थोडा हिसाब था, वो complete हो गया। थोडा खर्चा कराने का और दःख देने का भी थोडा हिसाब था। उतना पूरा हो गया, तो फिर वो चला गया। अगर बाईस साल का हो गया फिर मर गया होता तो आपको कितना दुःख होता था? दादाश्री : वो real लडका नहीं था आपका। अगर real लडका होता तो उसको जब जला दिया, तब तुम भी उसके साथ बैठे होते थे। क्यों नहीं बैठे? वो real नहीं है, वो relative है। सच्चा संबंध नहीं है, relative संबंध है। प्रश्नकर्ता : लेकिन उसकी आत्मा चली जाती है फिर अपना उसके साथ संबंध नहीं रहा न? दादाश्री : हाँ, मगर वह संबंध relative संबंध था और आपके के साथ कुछ हिसाब बाकी था, वो ऋणानुबंध था। और उससे ही सारा दूसरे आदमी का लडका नहीं मर जाता? जब आपका पौत्र मर जाये तो आपको दु:ख लगता है तो दूसरे का लडका मर जाये तो भी उतना ही दु:ख होना चाहिये। हमें तो समान होना चाहिए न? आपको कैसा लगता है? ये तो अपने खुद के लिए रोता है। दूसरों के लिए आपको कुछ नहीं होता?
SR No.009601
Book TitleSarva Dukho Se Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages47
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size94 KB
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