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________________ सर्व दुःखों से मुक्ति है नहीं। वो सब बोलते है कि हमको ये दुःख है; ये दुःख है, तो हमारे पास आ जाते है, तो सबका दुःख निकल जाता है। क्योंकि हम दुःखी कभी हुए नहीं । हमने दुःख कभी देखा ही नहीं। हम मोक्ष में, निरंतर मुक्त भाव से रहते है। २१ प्रश्नकर्ता : वो मैंने मान लिया कि मुझे कोई दुःख नहीं होगा । लेकिन मेरा छह साल का बच्चा है, वो चल भी नहीं सकता, बोल भी नहीं सकता, बिमार ही रहता है, उसको बहुत परेशानीयाँ है, अगर मैं अकेला रहुं और बच्चा अकेला रहे तो मैं adjust करके चला लूँ। लेकिन बच्चे की माँ को क्युं भुगतना पडता है? वो मेरे से देखा नहीं जाता। दादाश्री : नहीं, वो भी पार्टनर है न ? शेरहोल्डर है न? तुम्हारे अकेले का कर्म नहीं, सब शेर होल्डर है। जो ज्यादा भुगतता है, उसका share ज्यादा है। प्रश्नकर्ता: और ऐसा होने से भगवान पर जो faith है, विश्वास है, वो भी कम होना शुरू हो जाता है। दादाश्री : आपको भगवान पर श्रद्धा कम हो जाती है लेकिन भगवान इसमें कुछ करता ही नहीं। उसके उपर ये आक्षेप लगाते है कि 'भगवान ने हमारे लडके को दुःख दिया, ऐसा बना दिया, हमको ऐसा नुकसान किया।' भगवान ऐसा कुछ करता ही नहीं। भगवान तो भगवान ही है, संपूर्ण ऐश्वर्य के साथ है और आपके अंदर बेठा हुआ है। हम वो देख सकते है। The world is the puzzle itself! God has not puzzled this world at all. Itself puzzled हो गया है और उसमें से puzzle ही होता है। आपको नहीं, हरेक आदमी को puzzle ही होता है। जो 'ज्ञानी' है, इसको puzzle नहीं होता और हमने जिसको ज्ञान दिया है, उसको puzzle नहीं होता, क्योंकि वो २२ सर्व दुःखों से मुक्ति ज्ञान में ही रहते है । प्रश्नकर्ता: हमारे जीवन में ये प्रसंग भगवान क्युं लाये ? वो हमारी समझ में नहीं आता। दादाश्री : ये दुनिया में सभी जात के लोग है, मगर तुम्हारे रागद्वेष जहाँ पर है, उसके साथ तुम्हारा संबंध होता है। अच्छे आदमी के साथ राग करता है, तो उसके साथ संबंध होता है और बूरे आदमी के साथ द्वेष करता है, तो उसके साथ भी संबंध हो जाता है। द्वेष किया तो भी वो आपके यहाँ आयेगा और राग किया तो भी वो आपके यहाँ आयेगा। वो बच्चे के लिए पूर्वजन्म में आपने क्या किया था ? दूसरे सब लोगों से उस बच्चे को परेशानी आ गयी, तब आपकी उससे कुछ पहचान नहीं थी, फिर भी वो protection के लिए आया तो आपने क्या बोला कि 'हमारी पूरी जिंदगी जायेगी फिर भी उसको हम बचायेगें'। वो हिसाब joint हो गया। दूसरा कुछ नहीं, ऐसे संबंध में आ गये। प्रश्नकर्ता : ये फर्ज जो हम बजाते है, उसके लिए सिर्फ शक्ति चाहते है, और कुछ नहीं । दादाश्री : हाँ, बरोबर है, वो शक्ति तो माँगनी ही चाहिये। क्यों कि फर्ज बजानी ही चाहिये। अपने Indian संस्कार है, ऐसे छोड देने का नहीं। आपने पकड़ लिया, हाथ दिया, फिर छोड़ने का नहीं। औरत को divorce भी नहीं दे सकते है, क्योंकि अपना Indian Cultured है न? प्रश्नकर्ता: जब प्रेरणा हो गयी आपके पास आने के लिए, तो कोई अच्छी चीज होनेवाली है। दादाश्री : हम तो निमित्त है, हम कोई चीज के कर्ता नहीं है। मगर हमारा ये यशनाम कर्म है कि जिसको अच्छा होने का हो तो वो
SR No.009601
Book TitleSarva Dukho Se Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages47
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size94 KB
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