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________________ सर्व दुःखों से मुक्ति सर्व दुःखों से मुक्ति फिर हमारे पास आ जाता है, ऐसा हमारा यश है। हम कुछ करते नहीं, यश ही सब काम करता है। कुदरत की व्यवस्था का प्रमाण ! प्रश्नकर्ता : आज तो दुनिया में हर जीव द:खी है। हम इससे छूटकारा कैसे पायें? दादाश्री : 'ज्ञानी' मिले तो दुःख से छूटकारा हो जाये। प्रश्नकर्ता : सबको तो ज्ञानी मिल नहीं सकते तो सब सुखी कैसे हो सकते है? दादाश्री : नहीं, नहीं, सबके लिए सुख नहीं है। ये कलयुग है, दुषमकाल है। भगवान ने कहा था कि दुषमकाल में सुख की इच्छा ही मत करो, उसको मांगो ही मत। ऐसा बोलना कि भगवान, कुछ दुःख कम करो। सख तो 'ज्ञानी पुरुष' हो तो ही सुख हो सकता है। नहीं तो इसमें सुख नहीं है। समकिती आदमी के पास बैठो तो सुख आयेगा। मिथ्यात्वी के पास से सुख नहीं आयेगा। प्रश्नकर्ता : फोरेन में लोग दु:खी है, इससे भी ज्यादा दुःखी यहाँ है। दादाश्री : वो बात ठीक है। यहाँ के लोग को ज्यादा चिंताworries है, क्योंकि इधर विकल्पी लोग है और वो लोग सहज है। सहज याने बालक के जैसे और इधर बड़े उमरवाले जैसे है। बड़े उमरवाले को ज्यादा दु:ख रहता है। प्रश्नकर्ता : अपने India में बहुत से लोग को खाना खाने का भी पूरा नहीं मिलता। दादाश्री : कौन बोलता है कि खाना भी नहीं मिलता? ये सब गलत बात है। खाना खाये बिना कोई आदमी मर नहीं गया। प्रश्नकर्ता : अभी गरीबी है वो ठीक है? दादाश्री : वो गरीबी है नहीं, जो है वो बरोबर है। कुदरत ने बिलकुल करेक्ट रखा है। कौन गरीब है? आपको गरीबी किसने बतायी, गरीब किधर देखा आपने? और हमको बताओ कि कौन गरीब नहीं है? ये बड़ौदा शहर में कौन गरीब नहीं है? गरीब की डेफिनेशन ऐसी नहीं है। गरीब आप आँख से देखते है वो गरीब है, ऐसा मान लिया ये ठीक नहीं है। अमुक जातवाले को खाने का ही मिलना चाहिये, उसके पास नगद रकम तो होनी ही नहीं चाहिये। ये कुदरत का ही खेल है। कुदरत ने ही ऐसा हिन्दुस्तान के लिए रखा है, बाहर के लिए कुछ भी हो। कुदरत ने जो हिन्दुस्तान के लिए किया है, वो बरोबर, ठीक है। 'ज्ञानी' मिले तो क्या लोगे? दादाश्री : किस लिए धंधा करते हो? किस लिए पैसा बचाते हो? वो सब कभी सोचा है? प्रश्नकर्ता : वह तो जिंदगी का एक भाग है। दादाश्री : हाँ, मगर पैसे बचाकर क्या करने का? वो सब लोग तो चले जाते है न? last station जाते है न? तो वो साथ में ले जाते है? प्रश्नकर्ता : यहाँ अपनी आवश्यकता पूरी करने के लिए. शांति से जीने के लिए। दादाश्री : हाँ, मगर उसका फायदा क्या? पैसा कमाना जरुरी है, वो तो हम भी स्वीकार करते है मगर किस हेतु के लिए है? खानेपीने के लिए? शांति के लिए? तो शांति किस लिए? क्या फायदा? कोई बुजुर्ग आदमी को पूछा नहीं? प्रश्नकर्ता : तो आप बताईए। दादाश्री : 'ज्ञानी पुरुष' मिले तो उनके पास अपना 'self
SR No.009601
Book TitleSarva Dukho Se Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages47
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size94 KB
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