SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रेम ३० लगनी तो आंतरिक होनी चाहिए। बाहर का खोखा बिगड़ जाए, सड़ जाए तब भी प्रेम उतना का उतना ही रहे। यह तो हाथ जल गया हो और हम कहें कि, 'जरा धुलवा दो' तो पति कहेगा कि, 'ना, मुझसे नहीं देखा जाता!' अरे, उस दिन तो हाथ सहला रहा था, और आज क्यों ऐसा? यह घृणा कैसे चले? जहाँ प्रेम है वहाँ घृणा नहीं और जहाँ घृणा है वहाँ प्रेम नहीं। संसारी प्रेम भी ऐसा होना चाहिए कि जो एकदम कम न हो जाए और एकदम बढ़ न जाए। नोर्मेलिटी में होना चाहिए। ज्ञानी का प्रेम तो कभी भी कम-ज्यादा नहीं होता। वह प्रेम तो अलग ही होता है। उसे परमात्म प्रेम कहते हैं। प्रेम सब जगह होना चाहिए। पूरे घर में प्रेम ही होना चाहिए। जहाँ प्रेम है, वहाँ भूल नहीं निकालता कोई। प्रेम में भूल नहीं दिखती। और यह प्रेम नहीं. इगोइजम है। मैं पति हूँ वैसा भान है। प्रेम उसका नाम कहलाए कि भूल न लगे। प्रेम में चाहे जितनी भूल हो तो निभा लेता है। आपको समझ में आता है? प्रश्नकर्ता : हाँ जी। दादाश्री : इसलिए भूलचूक हो कि प्रेम के खातिर जाने देनी। इस बेटे पर आपको प्रेम हो न, तो भल नहीं दिखेगी बेटे की। होगा भई, कोई हर्ज नहीं। प्रेम निभा लेता है सब। निभा लेता है न?! बाकी, प्रेम देखने को नहीं मिलेगा इस काल में। जिसे सच्चा प्रेम कहा जाता है न. वह देखने को नहीं मिलेगा। अरे, एक व्यक्ति मुझे कहता है कि 'इतना अधिक मेरा प्रेम है, तब भी वह तिरस्कार करती है!' मैंने कहा, 'नहीं है यह प्रेम। प्रेम को तरछोड़ कोई मारे ही नहीं।' पति ढूंढे अक्कल, पत्नी देखे होशियारी तब जिस प्रेम में खुद अपने को ही होम दे, खुद की सेफसाइड रखे नहीं और खुद को होम दे, वह प्रेम सच्चा। वह तो अभी मुश्किल है बात। प्रश्नकर्ता : ऐसे प्रेम को क्या कहा जाता है? अनन्य प्रेम कहलाता है? दादाश्री : इसे प्रेम कहा जाता है संसार में। यह आसक्ति में नहीं आता और उसका फल भी बहुत ऊँचा मिलता है। पर वैसा खुद अपने को होम देना, वह होता नहीं न! यह तो खुद अपनी सेफसाइड रखकर काम किया करते हैं। और सेफसाइड न करे ऐसी स्त्रियाँ कितनी और ऐसे पुरुष कितने? यह तो सिनेमा में जाते समय आसक्ति की तान में और तान में। और आते समय 'अक्कल बिना की है' कहेगा। तब वो कहेगी. 'आपमें कहाँ होशियारी है?' ऐसे बाते करते-करते घर आते हैं। वह होशियारी देख रही होती है! प्रश्नकर्ता : यह तो ऐसा इन सभी का अनुभव है। कोई बोलता नहीं, पर हर एक व्यक्ति जानता है कि 'दादा' कहते हैं, वह बात सच्ची है। प्रेम से ही जीता जाए प्रश्नकर्ता : संसार में रहने के बाद कितनी ही जिम्मेदारियां पूरी करनी पड़ती है और जिम्मेदारियाँ अदा करनी, वह एक धर्म है। उस धर्म का पालन करते हुए, कारण या अकारण कटुवचन बोलने पड़ते हैं, तो बाकी, यह तो आसक्ति है सब! घड़ी में पत्नी है, वह गले में हाथ डालती है और चिपक जाती है और फिर घड़ी में वापिस बोलाचाली हो जाती है। 'तूने ऐसा किया, तूने ऐसा किया।' प्रेम में कभी भी भूल नहीं होती। प्रेम में भूल दिखती नहीं। यह तो प्रेम ही कहाँ है? नहीं चाहिए, भाई? हमें भल नहीं दिखे तो हम समझें कि इसके साथ प्रेम है हमें! वास्तव में प्रेम होगा इन लोगों को?! मतलब इसे प्रेम कैसे कहे?!
SR No.009600
Book TitlePrem
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages39
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size232 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy