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________________ प्रेम ३१ वह पाप या दोष माना जाता है? ये संसारी धर्मों का पालन करते समय कड़वे वचन बोलने पड़ते हैं, तो वह पाप या दोष है? दादाश्री: ऐसा है न, कडवा वचन बोलें, उस समय हमारा मुँह कैसा हो जाता है? गुलाब के फूल जैसा, नहीं? अपना मुँह बिगड़े तो समझना कि पाप लगा। अपना मुँह बिगड़े ऐसी वाणी निकली, वहीं समझना कि पाप लगा। कड़वे वचन नहीं बोलते। धीरे से. आहिस्ता से बोलो। थोडे वाक्य बोलो, पर आहिस्ता रहकर, समझकर कहो, प्रेम रखो, एक दिन जीत सकोगे। कड़वे से जीत नहीं सकोगे। पर वह सामने विरोध करेगा और उल्टे परिणाम बांधेगा। वह बेटा उल्टा परिणाम बांधेगा। अभी तो छोटी उम्र का हूँ, इसलिए मुझे इतना झिड़कते हैं। बड़ी उम्र का हो जाऊँगा तब वापिस दूँगा।' ऐसे परिणाम अंदर बांधता है। इसलिए ऐसा मत करो। उसे समझाओ। एक दिन प्रेम जीतेगा। दो दिन में ही उसका फल नहीं आएगा। दस दिन, पंद्रह दिन, महीने तक प्रेम रखा करो। देखो, उस प्रेम का क्या फल आता है, वह तो देखो! आपको पसंद आई यह बात? कड़वा वचन बोले तो अपना मुँह नहीं बिगड़ जाता? प्रश्नकर्ता : हम अनेक बार समझाएँ, फिर भी वह न समझे तो क्या करें? दादाश्री : समझाने की ज़रूरत ही नहीं है। प्रेम रखो। फिर भी हम उस समझाएँ धीरे से। अपने पड़ोसी को भी ऐसा कड़वा वचन बोलते हैं हम? प्रश्नकर्ता : पर वैसा धीरज होना चाहिए न? दादाश्री : अभी पहाड़ी पर से पत्थर गिरे और वह आपके सिर पर पड़े तो आप ऊपर देख लेते हो और फिर किस पर क्रोध करते हो? उस घड़ी शांत रहते हो न? कोई दिखता नहीं इसलिए हम समझते हैं कि यह किसीने नहीं डाला। यानी अपने आप गिरा है। इसलिए उसका हम गुनाह नहीं मानते। तब वह भी अपने आप ही गिरता है। वह तो डालनेवाला तो व्यक्ति दिखता है इतना ही। बाकी अपने आप ही गिरता है। आपके ही हिसाब चुक रहे हैं सब। इस दुनिया में सब हिसाब चुक रहे हैं। नये हिसाब बंध रहे हैं और पुराने हिसाब चुक रहे हैं। समझ में आया न? इसलिए सीधा बोलना बेटे के साथ, अच्छी भाषा बोलना। प्रेम से पालना-पोसना पौधे को प्रश्नकर्ता : व्यवहार में कोई गलत कर रहा हो तो उसे टोकना पड़ता है, तो उससे उसे दुख होता है। तो वह किस तरह उसका निकाल करें? दादाश्री : टोकने में हर्ज नहीं है, पर हमें आना चाहिए न! कहना आना चाहिए न, क्या? प्रश्नकर्ता : किस तरह? दादाश्री : बच्चे से कहें, 'तुझमें अक्कल नहीं, गधा है।' ऐसा बोलें तो फिर क्या होगा, वहाँ। उसे भी अहंकार होता है या नहीं? आपको ही आपका बोस कहे कि 'आपमें अक्कल नहीं, गधे हो।' ऐसा कहे तो क्या हो? नहीं कहते ऐसा। टोकना आना चाहिए। प्रश्नकर्ता : किस तरह टोकना चाहिए? दादाश्री : उसे बैठाओ। फिर कहो, हम हिन्दुस्तान के लोग, आर्य प्रजा अपनी, हम कोई अनाड़ी नहीं और अपने से ऐसा नहीं होना चाहिए। ऐसा-वैसा सब समझाएँ और प्रेम से कहें तब रास्ते पर आएगा। नहीं तो आप तो मार, लेफ्ट एन्ड राइट, लेफ्ट एन्ड राइट ले लो तो चलता होगा? परिणाम प्रेम से किए बिना आता नहीं। एक पौधा भी पालनापोसकर बड़ा करना हो तो भी प्रेम से करते हो, तो बहुत अच्छा उगता है। पर वैसे ही पानी डालो न, और चीखो-चिल्लाओ तो कुछ नहीं होता। एक पौधा बड़ा करना हो तो! आप कहते हो कि ओहोहो, बहुत अच्छा हुआ पौधा। तो उसे अच्छा लगता है! वह भी अच्छे फूल देता है बड़ेबड़े!! तो फिर ये मनुष्य को तो कितना अधिक असर होता होगा?!
SR No.009600
Book TitlePrem
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages39
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size232 KB
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