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________________ प्रतिक्रमण प्रतिक्रमण जरूरत है। उसके पास क्या बचा है? शेष क्या रहा है यह देखने की जरूरत है। इस काल में कुछ शेष ही नहीं रहता न! कुछ शेष रहा है ऐसे यह सारे हमारे (आत्मज्ञान पाये) महात्मा आत्मिक उँचाई पर हैं न! जो हमारी साथ हो, पहले भी थे और आज भी हैं, वे हमारे धर्मबंधु कहलायें और इन्ही धर्मबंधुओं के साथ ही कई जनमों के बैर बँधे होते हैं। उनके साथ कुछ बैर बंधा हो तो, उसके लिए हम आमने-सामने प्रतिक्रमण कर लें तो सारा हिसाब चुकता हो जाये। एक भी मनुष्य का आमने-सामने प्रतिक्रमण करना नहीं भूलें। सहाध्यायी के साथ ही ज्यादा बैर बँधता है, और उसके प्रत्यक्ष प्रतिक्रमण करें तो धुल जायें। यह औरंगाबाद में जो प्रतिक्रमण करवाते हैं ऐसे प्रतिक्रमण तो वर्ल्ड (दुनिया) में कहीं भी नहीं होंगे। प्रश्नकर्ता : वहाँ सभी रोते थे न! बड़े-बड़े सेठ लोग भी रो रहे थे। दादाश्री : हाँ, सब कितना रोते थे! अब ऐसा प्रतिक्रमण सारी जिन्दगी में एक ही किया हो तो बहुत हो गया। प्रश्नकर्ता : बड़े लोगों को रोने की जगह कहाँ है? यह कोई एकाध ही होगी। दादाश्री : हाँ, सच है। वहाँ तो सभी बहुत रोते थे। प्रश्नकर्ता : मैंने तो ऐसा पहली ही बार देखा कि ऐसे सभी समाज के प्रतिष्ठित कहलानेवाले लोग खुले मुँह वहाँ रोते थे!!! दादाश्री : खुले मुँह रोते थे और अपनी बीबी के पैरों में पड़कर माफ़ी माँगते थे, आपने वहाँ ऐसा नहीं देखा था? प्रश्नकर्ता : हाँ, अन्यत्र ऐसा दृश्य कोई जगह देखा नहीं था! दादाश्री : होगा ही नहीं न! और ऐसा अक्रम विज्ञान नहीं होगा, ऐसा प्रतिक्रमण नहीं होगा, ऐसा कुछ होगा ही नहीं। प्रश्नकर्ता : ऐसे 'दादाजी' भी नहीं होगें! दादाश्री : हाँ। ऐसे 'दादाजी' भी नहीं होगें। मनुष्य ने सच्ची आलोचना नहीं की है। वही मोक्ष में जाने में बाधारूप है। गुनाह में हर्ज नहीं, सच्ची आलोचना हो तो कोई हर्ज नहीं है। और आलोचना गज़ब के पुरुष के पास करनी चाहिए। खुद के दोषों की आलोचना जिन्दगी में किसी जगह की है? किसके पास आलोचना करते? और आलोचना किये बिना छुटकारा नहीं है। जहाँ तक आलोचना नहीं करोगे तो इसे माफ़ कौन करायेगा? ज्ञानी पुरुष चाहे सो कर सकते हैं, क्योंकि वे कर्ता नहीं हैं इसलिए। यदि कर्ता होते तो उन्हें भी कर्मबंधन होता। पर कर्ता नहीं है इसलिए चाहे सो करे। वहाँ हमें आलोचना गुरुजी के पास करनी चाहिए। पर आखिरी गुरुजी यह 'दादा भगवान' कहलाये। हमने तो आपको रास्ता दिखा दिया। अब आखिरी गुरुजी दिखा दियें। वे आपको उत्तर दिया करेंगे और इसलिए तो वे 'दादा भगवान' हैं। जब तक वे प्रत्यक्ष नहीं होते. तब तक 'यह' दादा भगवान को भजने होंगे। उनके प्रत्यक्ष होने के पश्चात् अपने आप आते-आते फिर वह मशीन चालु हो जायेगा। अर्थात् फिर वह खुद 'दादा भगवान' हो जाये। ज्ञानी पुरुष के पास बँक कर रखा माने खत्म हो गया। लोग खुल्ला करने के लिए तो प्रतिक्रमण करते है। वह भाई सब लेकर आया था न? तब उलटे खुला कर दे ज्ञानी के पास! तो वहाँ कोई इँकेगा तो क्या होगा?!!! दोष ढंकने पर वे डबल (दो गुने) होंगे। औरत के साथ जितनी जान-पहचान है, उतनी प्रतिक्रमण के साथ जान-पहचान होनी चाहिए। जैसे औरत भलाई नहीं जाती वैसे प्रतिक्रमण भुलाना नहीं चाहिए। सारा दिन माफ़ी माँग माँग माँग किया करे। माफ़ी माँगने की आदत ही हो जानी चाहिए। यह तो दूसरों के दोष देखने की दृष्टि ही हो गई है! जिसके साथ विशेष अतिक्रमण हुआ हो, उसके साथ प्रतिक्रमण
SR No.009599
Book TitlePratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size39 KB
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