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________________ प्रतिक्रमण प्रतिक्रमण दादाश्री : प्रतिक्रमण करने पर हलके हो और प्रतिक्रमण नहीं करने पर वही का वही बोझ फिर से आये। फिर छटक जाये बाद में, बिना चार्ज हुए अर्थात् प्रतिक्रमण से हलके कर-करके बाद में निपटारा हुआ करेगा। प्रश्नकर्ता : आप कहते हैं कि अतिक्रमण न्युट्रल (भावाभाव रहित) ही है, तो फिर प्रतिक्रमण करने का ही कहाँ रहा? दादाश्री : अतिक्रमण न्युट्रल ही है। पर उसमें तन्मयाकार होने की वजह से बीज पड़ता है। लेकिन अतिक्रमण में तन्मयाकार नहीं होते तो बीज नहीं पड़ता। अतिक्रमण कुछ भी नहीं कर सकता। और प्रतिक्रमण तो 'हम' तन्मयाकार नहीं होते तो भी करे। चन्दुभाई तन्मयाकार हो गये उसे भी आप जाने और नहीं हुए उसे भी आप जाने। आप तन्मयाकार होते ही नहीं। तन्मयाकार मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार होते हैं, उन्हें आप जानते हैं। यज्ञ शुरु कर देना। अतिक्रमण बहुत किये हैं और प्रतिक्रमण किये ही नहीं, उसका यह सब परिणाम है। यह प्रतिक्रमण तो हमारी सूक्ष्मातिसूक्ष्म खोज (आविष्कार) है। यदि यह खोज समझ में आ जाये तो किसी के साथ कोई झगड़ा नहीं रहेगा। प्रश्नकर्ता : दोषों की लिस्ट (सूचि) तो बहुत लम्बी होती है। दादाश्री : वह लम्बी हो तो, मान लो कि यह एक मनुष्य के साथ सौ तरह के दोष हो गये हो तो सब का साथ में प्रतिक्रमण कर डालना कि इन सभी दोषों की मैं आप से क्षमा चाहता हूँ! प्रश्नकर्ता : अब यह जिन्दगी का ड्रामा (नाटक) जलदी पूरा हो तो अच्छा! दादाश्री : ऐसा क्यों बोले? प्रश्नकर्ता : आप बीस दिन थे यहाँ, परंतु एक जगह भी नहीं आ सका। दादाश्री : इसलिए देह पूरी कर देनी चाहिए क्या? इस देह से 'भगवान' को पहचाना। इस देह का तो इतना उपकार है कि कोई भी दवाई करनी पडे तो वह करनी चाहिए। इस देह से तो 'दादाजी' की पहचान हुई। अनंत देह खो दिये, सभी व्यर्थ गये। इस देह से ज्ञानी को पहचाने, इसलिए यह देह मित्र समान हो गया। इसलिए उस देह का जतन करना।'देह जलदी समाप्त हो जाये' ऐसा कहा, उसकी माफ़ी माँगता हूँ। इसलिए आज प्रतिक्रमण करना। २५. प्रतिक्रमण की सैद्धांतिक समझ प्रश्नकर्ता : तन्मयाकार हो जाये इसलिए जागृतिपूर्वक पूरा-पूरा निपटारा नहीं होता। अब तन्मयाकार होने के पश्चात् खयाल आये, तो फिर उसका कुछ प्रतिक्रमण करके निपटारा करने का कोई रास्ता है क्या? प्रश्नकर्ता : तन्मयाकार चन्दुभाई हुए इसलिए चन्दुभाई से प्रतिक्रमण करने को कहना होगा न? दादाश्री : हाँ। चन्दुभाई से कहने का। प्रश्नकर्ता : सपने में प्रतिक्रमण हो सके? दादाश्री : हाँ, बहुत अच्छे हो सके। सपने में प्रतिक्रमण होंगे वे अभी होते हैं. उनसे अच्छे होंगे। अभी तो हम बिना सोचे-समझे कर डाले। सपने में जो काम होता है, वह सारा का सारा पद्धति अनुसार होता है। सपने में 'दादाजी' नज़र आये तो ऐसे 'दादाजी' तो हमने देखे ही नहीं हो ऐसे 'दादाजी' नज़र आये। जागृति में भी ऐसे दादाजी नहीं दिखते, ऐसे सपने में बहुत सुन्दर दिखे। क्योंकि सपना वह सहज अवस्था है और यह जागृत वह असहज अवस्था है। क्रमिक मार्ग में आत्मप्राप्ति के पश्चात् प्रतिक्रमण नहीं होता। प्रतिक्रमण 'पोइझन' (जहर) माना जाता है। हमारे यहाँ हमें भी प्रतिक्रमण
SR No.009599
Book TitlePratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size39 KB
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