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________________ प्रतिक्रमण प्रतिक्रमण पहुँचती, वहाँ आत्मा के प्रभाव से होता है। आत्मा अनंत शक्तिमान है, यह उसकी प्रज्ञाशक्ति पाताल फोड़कर दिखाती है। इस प्रतिक्रमण से तो खुद हलकापन महसूस करे, कि अब हलका हो गया और बैर छूट जाये, नियम से ही छूट जाये। और इस प्रतिक्रमण करने के लिए वह सामनेवाला का साथ नहीं हो तो उसमें भी कोई हर्ज नहीं है। इसमें रूबरू दस्तखत की जरूरत नहीं है। जैसे यह कोर्ट में रूबरू दस्तखत की जरूरत है ऐसी जरूरत उसमें नहीं है क्योंकि ये गुनाह रूबरू नहीं हए हैं। यह तो लोगों की गैरहाजिरी में गुनाह हुए हैं। इस भांति लोगों के रूबरू में हुए हैं, परंतु रूबरू दस्तख़त नहीं किये हैं। दस्तखत अंदर के हैं, राग-द्वेष के दस्तखत हैं। किसी दिन एकांत में बैठे हो और ऐसे प्रतिक्रमण या ऐसा कुछ करते करते करते भीतर में थोड़ा आत्मानुभव हो जाये। उसका स्वाद आ जाये। वह अनुभव कहलाये। जब घर के लोग निर्दोष दिखाई दे तो समझना कि आपका प्रतिक्रमण सही है। वास्तव में निर्दोष ही है, सारा संसार निर्दोष ही है। उनके दोष से नहीं, आपके अपने दोष से ही आप बँधे हुए हैं। अब ऐसा जब समझ में आयेगा तब कुछ हल निकलेगा! प्रश्नकर्ता : निश्चय में तो विश्वास है कि जगत् सारा निर्दोष है। दादाश्री : वह तो प्रतीति में आया कहलाये। अनुभव में कितना आया? वह बात इतनी आसान नहीं है। वह तो खटमल घेर लें, मच्छर घेर लें, साँप घेर लें, तब निर्दोष नज़र आये तो सही। लेकिन हमें प्रतीति में रहना चाहिए कि निर्दोष है। हमें दोषित नज़र आते हैं यह हमारी भूल है। उसका प्रतिक्रमण करना चाहिए। हमारी प्रतीति में भी निर्दोष हैं और हमारे वर्तन में भी निर्दोष हैं। तुझे तो अभी प्रतीति में भी नहीं आया कि निर्दोष है, तुझे अभी दोषित लगते हैं। कोई कुछ करे, उसके लिए फिर प्रतिक्रमण करता है लेकिन शुरूआत में तो दोषित लगते हैं। प्रश्नकर्ता : शुद्ध उपयोग हो तो अतिक्रमण होगा? दादाश्री : होगा। अतिक्रमण भी होगा और प्रतिक्रमण भी होगा। हमें ऐसा लगे कि यह तो हम उपयोग चूक कर उलटें रास्ते चले। तब उपयोग चूके उसका प्रतिक्रमण करना पडेगा। उलटा रास्ता माने वेस्ट ऑफ टाइम एण्ड एनर्जी (समय और शक्ति का दुर्व्यय) होता है, फिर भी उसके प्रतिक्रमण नहीं करें तो चलेगा। उसमें बहुत ज्यादा नुकसान नहीं है। एक जनम अभी शेष है, इसलिए लेट गो किया था (जाने दिया था) पर जिसे उपयोग छोड़ना ही नहीं हो उसे उपयोग चूकने पर प्रतिक्रमण करना होगा। प्रतिक्रमण माने वापस लौटना। कभी भी वापस लौटा ही नहीं है न! हम किसी जगह विधि नहीं रखते। औरंगाबाद में हम अनंत अवतार के दोष धुल जायें ऐसी विधि रखते हैं। एक घंटे की प्रतिक्रमण विधि में तो सभी का अहंकार भस्मीभूत हो जाता है! हम वहाँ औरंगाबाद में तो बारह महिनों में एक बार प्रतिक्रमण करवाते थे। तब दो सौ-तीन सौ लोग रोया करे और उनका सारा रोग निकल जाये। क्योंकि औरत के उसका आदमी पैर छूएं, वहाँ पर माफ़ी माँगे। कितने ही जनमों का बंधन हुआ था, उसकी माफ़ी माँगे, तब बहुतेरा शुद्ध हो जाये। वहाँ हर साल, इसके पीछे हमें बहुत बड़ी विधि करनी पड़े, सभी के मन शद्ध करने के लिए, आत्मा (व्यवहार आत्मा) की शुद्धि के लिए, बड़ी विधि करके वहाँ रख छोडें, कि सभी शुद्ध हो जायें उस घड़ी। कम्पलीट क्लीअर (संपूर्ण शुद्ध), खुद के ध्यान में भी न रहे कि मैं क्या लिखता हूँ, पर सब स्पष्ट लिख कर लाये। फिर 'क्लीअर' हो गया। अभेदभाव उत्पन्न हुआ न, एक मिनट मुझे सौंप दिया कि मैं ऐसा हूँ साहिब, वह अभेदभाव हो गया। इसलिए उसकी शक्ति बढ़ गई। और फिर मैं तेरे दोष जानूँ और दोष के ऊपर विधि रखता रहूँ। यह कलियुग है, कलियुग में कौन-सा दोष नहीं होगा? किसी का दोष निकालना यही भूल है। कलियुग में दूसरों का दोष निकालना यही खुद की भूल है। किसी का दोष निकालना नहीं। गुण क्या है, यह देखने की
SR No.009599
Book TitlePratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size39 KB
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