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________________ पाप-पुण्य दादाश्री : हाँ, यही प्रश्न दुर्योधन ने कृष्ण भगवान से किया था कि पाप को जानता हूँ और पुण्य को भी जानता हूँ अर्थात् अधर्म को जानता हूँ और धर्म को भी जानता हूँ, परन्तु अधर्म से निवृत्ति होती नहीं और धर्म में प्रवृत्ति होती नहीं। प्रश्नकर्ता : वह किसलिए नहीं होती? दादाश्री : उसने उस अधर्म को जाना ही नहीं है। पहले जानना चाहिए कि, 'मैं कौन हूँ?' यह सब किसलिए है? किसलिए यह भाई मुझ पर फन फैलाता है, और मुझे दूसरा भाई क्यों नहीं मिला? ये रोज़ गालियाँ सुनाता रहे, ऐसा भाई क्यों मिला? उसे तो बहुत अच्छा भाई मिला है, इन सबके पीछे कारण क्या है? वह सब समझना नहीं पड़ेगा? पाप-पुण्य तो मजदूर ही कमाते ! यह तो आपका पुण्य कमाता है और खुद अहंकार लेते हो, 'मैंने कमाया, मैंने कमाया।' वह दस लाख कमाए तब तक ऐसे सीना तानकर घूमता फिरता है और पाँच लाख का नुकसान हुआ, तब हम पूछे, 'सेठ क्यों ऐसा?' तब कहेगा, 'भगवान रुठे हैं।' देखो उसे कोई मिला भी नहीं फिर । दूसरा कोई मिलता नहीं। भगवान बेचारे के सिर पर डालता है। आपका मनचाहा (धारणा के अनुसार) ही हो, वह पुण्य का फल है और उससे उल्टा हो, वह सब पाप का फल है। इस जगत् में खद की धारणा चले वैसी है ही नहीं इस जगत् में। अपनी धारणा के अनुसार फल आए तो वह पुण्य का प्रारब्ध है, धारणा के अनुसार नहीं आए तो पाप का प्रारब्ध है। अहंकार से बँधे पुण्य-पाप प्रश्नकर्ता : यदि मुझे अहंकार भी नहीं हो और ममता भी नहीं हो, या फिर दोनों में से एक वस्तु नहीं हो तो मैं कौन-सा कर्म करूँ? प्रश्नकर्ता : वह किस तरह समझना चाहिए? दादाश्री : वे पूर्वजन्म के अपने कर्मों के हिसाब हैं, किसी भगवान ने इसमें हाथ नहीं डाला है। यह तो हर एक के कर्मों के हिसाब से सारे फायदे-नुकसान है। उसमें अहंकार करता है, इसलिए निरे पाप-पुण्य बँधते हैं। उन्हें फिर से भोगने के लिए जाना पड़ता है। इसलिए इन गतियों में भटकना पड़ता है। जेल हैं सभी। वह जेल भोगकर आ जाता है और वापिस था वैसा का वैसा ही। फिर वापिस अहंकार नहीं करे तो छुटकारा होगा। इसलिए मोक्ष में जाना हो तो छुटाकार पा लो। उसमें 'मैं कौन हूँ' की खोज करे और उसे जाने तो छुटकारा हो। नफा-नुकसान का आधार? दादाश्री : अहंकार है तो पाप-पुण्य होते हैं। अहंकार गया मतलब पाप-पुण्य गए और अहंकार लोग कम करते हैं न, उसका फल भौतिक सुख मिलता है। अहंकार कम किया, उससे कर्म बँधा। उसका फल भौतिक सुख मिलता है। अहंकार अधिक किया उसका कर्म बंधा, उससे भौतिक दु:ख आते हैं। अहंकार कम करने से कहीं अहंकार जाता नहीं है, पर वह भौतिक सुख देनेवाला है। जहाँ ज्ञानी हो तो ही अहंकार जाता है, नहीं तो अहंकार जाता नहीं है। कुछ हद तक ही अहंकार कम हो सकता है, उसे संसार में अड़चन नहीं पड़ती। महावीर भगवान की आज्ञा में रहे, तो कुछ हद तक अहंकार जरूर कम हो सकता है पर नोर्मल रहता है। नोर्मल अहंकार रहे तब संसार में क्लेश नहीं होता। घर में थोड़ा भी क्लेश या अंतरक्लेश नहीं होता। वैसा अभी भी अपने क्रमिक मार्ग में है। इतना भी वह किसीको ही होगा। थोड़े लोगों को क्लेश नहीं होता, अंतरक्लेश नहीं होता। पर वह अहंकार भी, मोक्ष प्राप्त करने के लिए निकालना पड़ेगा। पाँच इन्द्रियों के द्वारा जो-जो अनुभव में आता है वह सारा ही 'डिस्चार्ज' है। यह तो पुण्य के आधार पर खुद की धारणा के अनुसार होता है तब अहंकार करता है कि 'मैंने किया' और फिर जब पाप का उदय होता है और नुकसान होता है, तब 'भगवान ने किया' कहते हैं! नहीं तो कहते हैं कि मेरे ग्रह खराब हैं !!! और कमाई, वह तो सहज कमाई है। कोई मनुष्य कमा नहीं सकता है। यदि मेहनत से कमाया जा सकता
SR No.009596
Book TitlePap Punya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size268 KB
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