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________________ पाप-पुण्य दादाश्री : माफ़ी माँगनेवाला सच्चे मन से ही माफ़ी माँगता है और खोटे मन से माफ़ी माँगेगा तो भी चला लेंगे। तब भी माफ़ी माँगना। प्रश्नकर्ता : तब तो फिर उसे आदत पड़ जाएगी? दादाश्री: आदत पड़ जाए तो भले पड़ जाए पर माफ़ी माँगना। माफ़ी माँगे बिना तो बन आया समझो। माफ़ी का अर्थ क्या है? उसे प्रतिक्रमण कहा जाता है और दोषो को क्या कहा जाता है? अतिक्रमण। ६२ पाप-पुण्य ऐसी बात के लिए पश्चाताप करना। क्या कहते हैं? पसंद आए उसके लिए नहीं। यानी प्रायश्चित करना पड़ेगा। तू करता है? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : दादा भगवान के नाम से प्रतिक्रमण करता है या नहीं करता? प्रश्नकर्ता : वह किताब दी है न? उसमें कहे अनुसार करता हूँ। नौ कलमें करता हूँ। दादाश्री: करता है न? वह प्रतिक्रमण ही है। सबसे बड़ा प्रतिक्रमण, दादा भगवान की नौ कलमें रखी गई हैं न, वे परे जगत् के लिए कल्याणकारी प्रतिक्रमण हैं। प्रश्नकर्ता : यह बात सच है कि पश्चाताप के घड़े में चाहे जैसा पाप हो तो भी.... दादाश्री : हल्का हो जाता है, पश्चाताप के कारण। कर्म का नियम क्या है? अतिक्रमण करें तो उसका प्रतिक्रमण करो। समझ में आया आपको? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री: इसलिए माफ़ी अवश्य माँगो। और ये अक्कलमंद. जरूरत से ज्यादा अक्कलमंद की बात जाने दो! कोई गलत करता हो और माफ़ी माँगता हो तो माँगने दो न! 'दिस इज़ कम्पलीट लॉ' (यह पूर्ण कानून प्रश्नकर्ता : पूर्ण रूप से जलकर खाक़ नहीं हो जाते? पश्चाताप का सर्वश्रेष्ठ साबुन प्रश्नकर्ता : पाप दूर करने के लिए प्रायश्चित के सिवाय दूसरा कोई उपाय है क्या? दादाश्री: पूर्णतया जल भी जाते हैं। ऐसे कितने ही पाप तो जल भी जाते हैं, खतम हो जाते हैं। पश्चाताप का साबुन ऐसा है कि बहुतेरे कपड़ों पर काम करता है। दादाश्री : पाप दूर करने के लिए प्रायश्चित के सिवाय दूसरा कोई उपाय नहीं है। ये सारे पाप, वे क्या है? ये पाप जो है न. वह किसे पाप कहते हैं हम? तब कहें कि, जो आप यह सब करते हो, वह करने में हर्ज नहीं है। ये सभी बैठे हैं। अभी किसीको हर्ज नहीं है। उसमें कोई एक व्यक्ति कहे कि, 'क्यों आप देर से आए हो?' हमें ऐसा कहे, तब उसने अतिक्रमण किया, ऐसा कहा जाएगा। जो लोगों को पसंद नहीं आए कि ऐसा क्यों बोलता है? वह अतिक्रमण किया कहलाता है। वह अतिक्रमण करता है, इसीलिए ही भगवान ने प्रतिक्रमण करने को कहा है। अर्थात् पश्चाताप कितने का करना है? कि जिससे लोगों को दुःख हो, प्रश्नकर्ता : और उसमें आपकी साक्षी में करें, इसलिए फिर क्या बाकी रहा? दादाश्री : कल्याण हो जाए। इसलिए पश्चाताप के साबुन के समान दुनिया में और कोई साबुन नहीं है। नहीं है निवृत्ति पाप-पुण्य से... प्रश्नकर्ता : सभी सामान्य मनुष्य जानते हैं कि पाप क्या है और पुण्य क्या है, फिर भी उनमें से निवृत्त क्यों नहीं हो सकते?
SR No.009596
Book TitlePap Punya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size268 KB
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