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________________ ६० पाप-पुण्य से प्रतिक्रमण करना। सौ प्रतिशत धुल जाएँ पाप प्रश्नकर्ता : अर्थात् माफ़ी माँगने से अपने पापों का निवारण हो जाता है क्या? दादाश्री : उससे ही पापों का निवारण हो जाता है और कोई दूसरा रास्ता ही नहीं है। प्रश्नकर्ता : तो फिर बार-बार माफ़ी माँगे और बार-बार पाप करते रहें? पाप-पुण्य खेती के पाप धोने की विधि प्रश्नकर्ता : हम ठहरे किसान, और तम्बाकू की खेती करते हैं तब हमें ऊपर से हर एक पौधे की कोंपल यानी उसकी गरदन तोड़ ही देनी पड़ती है। उसका पाप तो लगेगा ही न? तो इस पाप का निवारण किस तरह करना चाहिए? दादाश्री: वह तो भीतर मन में ऐसा होना चाहिए कि कैसा यह धंधा, कहाँ से मेरे हिस्से में आया? बस उतना ही। पौधे की कोंपल निकाल देना, पर मन में ये काम कहाँ से मेरे हिस्से में आया, ऐसा पश्चताप होना चाहिए। ऐसा नहीं करना चाहिए, ऐसा मन में होना चाहिए, बस। प्रश्नकर्ता : पर यह पाप तो हुआ ही न? । दादाश्री : वह तो है ही। वह आपको नहीं देखना है। होता रहता है, उस पाप को नहीं देखना है। यह नहीं होना चाहिए वैसा आपको नक्की करना चाहिए। निश्चय करना चाहिए। यह काम कहाँ मिला? दुसरा अच्छा मिला होता तो हम ऐसा नहीं करते। जब तक यह नहीं जाना हो तब तक पश्चाताप नहीं होता। खुश होकर पौधे को फेंक देते। हमारे कहे अनुसार करना न। फिर आपकी सारी जिम्मेदारी हमारी। पौधे को फेंक दो उसमें हर्ज नहीं है, पश्चाताप होना चाहिए कि यह कहाँ से आया मेरे हिस्से में। प्रश्नकर्ता : कपास में दवाई छिड़कनी पड़ती है, तो क्या करें? उसमें हिंसा तो होती ही है न? दादाश्री : बार-बार माफ़ी माँगने की छूट है। बार-बार माफ़ी माँगनी पड़ेगी। हाँ, सौ प्रतिशत छूटने का रास्ता यही है ! माफ़ी माँगने के अलावा और किसी रास्ते छूट ही नहीं सकते इस जगत् में से। प्रतिक्रमण से सभी पाप धुल जाते हैं। प्रश्नकर्ता : प्रतिक्रमण करने से पाप नाश होते हैं, उसके पीछे साइन्स क्या है? दादाश्री : अतिक्रमण से पाप होते हैं और प्रतिक्रमण से पापों का नाश होता है। वापिस लौटने से पापों का नाश होता है। प्रश्नकर्ता : तो फिर कर्म का नियम कहाँ लागू होता है? हम माफ़ी माँगे और कर्म से छूट जाएँ तो फिर उसमें कर्म का नियम नहीं रहा न? दादाश्री : यही कर्म का नियम है! माफ़ी माँगनी वही कर्म का नियम है!! प्रश्नकर्ता : तब तो सभी पाप करते जाएँ और माफ़ी माँगते जाएँ। दादाश्री : हाँ, पाप करते जाना और माफ़ी माँगते जाना है, यही भगवान ने कहा है। प्रश्नकर्ता : परन्तु सच्चे मन से माफ़ी माँगनी है न? दादाश्री : अनिवार्य रूप से जो-जो कार्य करने पड़ें, वह प्रतिक्रमण करने की शर्त पर करने चाहिए। आपको इस संसार व्यवहार में कैसे चलना है, वह नहीं आता है। वह हम आपको सिखाएँगे, ताकि नये पाप नहीं बंधे। खेतीबाड़ी में जीव-जंतु मरते हैं, उसका दोष तो लगेगा ही न? इसलिए खेतीबाड़ीवालों को हररोज़ पाँच-दस मिनट भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए कि यह दोष हुए उसकी माफ़ी माँगता हूँ। किसान हो उसे कहते हैं कि तू यह धंधा करता है, उसमें जीव मरते हैं। उसका इस तरह
SR No.009596
Book TitlePap Punya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size268 KB
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