SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाप-पुण्य पाप तो भुगतने पड़ेंगे न? दादाश्री : प्रतिक्रमण से नये पाप नहीं होंगे, ऐसा आपका कहना सही है और पुराने पाप तो भुगतने ही पड़ेंगे। अब वह भुगतना कम हो सकता है, इसके लिए मैंने फिर मार्ग बताया है कि तीन मंत्र साथ में बोलना, तो भी भुगतने का फल हल्का हो जाएगा। किसी आदमी के सिर पर डेढ़ मन का बोझा हो और बेचारा ऐसे तंग आ गया हो, पर उसे कोई चीज़ अचानक दिख गई और दृष्टि वहाँ गई तो वह अपना दुःख भूल जाएगा, बोझा है फिर भी उसे दु:ख कम लगता है। ऐसे ही ये त्रिमंत्र हैं न, उन्हें बोलने से वह बोझ लगेगा ही नहीं। मंत्र का सही अर्थ क्या है? मंत्र अर्थात् मन को शांत रखे वह। भगवान की भक्ति करते हुए संसार में विघ्न नहीं आएँ, इसलिए भगवान ने तीन मंत्र दिए हैं। (१) नवकार मंत्र (२) ॐ नमो भगवते वासुदेवाय (३) ॐ नमः शिवाय। ये मंत्र हेल्पिंग चीज़ है। आप कभी त्रिमंत्र बोले थे? एक दिन ही त्रिमंत्र बोले थे? वे ज़रा ज़्यादा बोलो न तो फिर सब हल्का हो जाएगा और आपको भय लगता हो वह भी बंद हो जाएगा। पाप-पुण्य दादाश्री : वह तो भीतर मन चोखा हो जाएगा न, तो पता चल जाएगा। चेहरे पर मस्ती छा जाएगी। आपको पता नहीं चलेगा कि दाग ही चला गया? क्यों नहीं चलेगा? हर्ज क्या है? और नहीं धले तो भी हमें हर्ज नहीं। तू प्रतिक्रमण कर न! तू साबुन डालता रह न! पाप को तू पहचानता है क्या? सामनेवाले को दु:ख हो वह पाप है, किसी जीव को, वह फिर मनुष्य हो, जानवर हो या पेड़ हो। बिना काम के पेड़ के पत्ते तोड़ते रहें तो उसे भी दुःख होता है, इसलिए वह पाप कहलाता है। इसलिए थोड़ा भी, किंचित् मात्र दु:ख नहीं हो ऐसा होना चाहिए। प्रश्नकर्ता : पर मनुष्य अपने स्वभाव के अनुसार करता हो तो भी उसमें उसे पुण्य-पाप लगता है? दादाश्री : सामनेवाले को दुःख हो तो पाप लगता है। वह स्वभाव के अनुसार करता है, पर उसे समझना चाहिए कि मेरे स्वभाव से सामनेवाले को दु:ख हो रहा है। इसलिए मुझे उससे माफ़ी माँग लेनी चाहिए कि मेरा स्वभाव टेढ़ा है और उससे उसे दुःख हुआ है, इसलिए माफ़ी मांगता हूँ। हम प्रतिक्रमण करें तो बहुत अच्छा है। अपने कपड़े साफ हो जाएँगे न? अपने कपड़ों में मैल किसलिए रहने दें? दादा ने ऐसा रास्ता दिखाया है, तो किसलिए साफ नहीं कर डालें? प्रश्नकर्ता : अतिक्रमण कब होता है, कि कुछ पिछले जन्मों का हिसाब होगा तभी न? दादाश्री : हाँ, तभी होगा। प्रश्नकर्ता : अर्थात् अपने लिए जब प्रतिक्रमण करते हैं, तब पिछले सभी जन्मों के पापों के लिए प्रतिक्रमण होता है क्या? दादाश्री : वह हिसाब हम तोड़ देते हैं। यानी अपने लोग 'शूट ऑन साइट' प्रतिक्रमण करते हैं, जिससे अपने दोष तुरन्त ही निर्मल हो जाते पुण्य का उदय क्या काम करता है? खुद का मनमानी सभी होने देता है। पाप का उदय क्या करता है? अपना नक्की किया हुआ सब उल्टा कर देता है। पाप धुल गए उसकी प्रतीति प्रश्नकर्ता : हमारे पाप कर्मों के लिए अभी किस तरह धोना चाहिए? दादाश्री : पापकर्म के तो जितने दाग़ पड़े हैं, उतने प्रतिक्रमण करने चाहिए, वे दाग़ गाढ़े हों तो बार-बार धोते रहना चाहिए, बार-बार धोते रहना चाहिए। प्रश्नकर्ता : वह दाग़ निकल गया या नहीं निकला वह किस तरह पता चले? हैं।
SR No.009596
Book TitlePap Punya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size268 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy