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________________ पाप-पुण्य हिन्दू सभी में होता है। पर अलग-अलग प्रकार से होता है। प्रश्नकर्ता : पादरी भी कहते हैं कि हमारे पास कन्फेशन (कबूल) कर जाओ तो सब पापों का नाश हो जाएगा। दादाश्री : ऐसे कन्फेस करना क्या आसान है? आपसे कन्फेशन होगा क्या? वह तो अंधेरी रात में अंधेर में करते हैं, वह व्यक्ति उजाले में मुंह नहीं दिखाता। रात को अंधेरा होगा तो कन्फेशन करूँगा, कहेगा। और मेरे पास तो चालीस हजार लोगों ने, लड़कियों ने भी उनका सबकुछ कन्फेशन किया हुआ है। एक-एक चीज़ कन्फेस की हैं। ऐसे लिखकर दे दिया है। खुलेआम कन्फेस किया, तो फिर पाप नाश हो ही जाएँगे न? कन्फेस करना आसान नहीं है। प्रश्नकर्ता : अर्थात् यह प्रतिक्रमण करते हैं और वह कन्फेस, दोनों एक समान ही हुए न फिर? दादाश्री : नहीं, वह एक समान नहीं हुआ। प्रतिक्रमण तो, अतिक्रमण हो जाए और फिर धोते रहें और वापिस दाग़ पड़े तो वापिस धोएँ, और पाप कन्फेस करना, जाहिर करना, वे दोनों चीजें अलग हैं। प्रश्नकर्ता : प्रतिक्रमण और पश्चाताप में फर्क क्या है? दादाश्री : पश्चाताप बिना नाम निर्देश के है। क्रिश्चियन रविवार को चर्च में पश्चाताप करते हैं। जो पाप किए उनका सामहिक पश्चाताप करते हैं। और प्रतिक्रमण तो कैसा है कि, जिसने गोली मारी, जिसने अतिक्रमण किया, वह प्रतिक्रमण करे, उसी क्षण ! 'शुट ओन साइट' (देखते ही गोली मारना) उसे धो डाले। वह भाव प्रतिक्रमण कहलाता है। पछतावे से घटे दंड प्रश्नकर्ता : पाप को निर्मूल करने के लिए तो उत्तम मार्ग प्रायश्चित है। यह बहुत सुंदर बात है, वैसा पुराणों में सत्पुरुषों ने कहा है। क्या खूनी आदमी खून करने के बाद पछतावा करे तो उसे माफ़ी मिल सकती है? पाप-पुण्य दादाश्री : खूनी आदमी खून करने के बाद खुश हो तो, उसका जो दंड बारह महीने का होनेवाला था, तो वह तीन वर्ष का हो जाता है, और खूनी आदमी खून करने के बाद पछतावा करे तो बारह महीने का जो दंड होनेवाला होता है, वह छह महीने का हो जाता है। कोई भी गलत कार्य करके फिर खुश होओगे तो वह कार्य तीन गुना फल देगा। कार्य करने के बाद पछतावा करोगे कि गलत कार्य किया, तो दंड कम हो जाएगा। ज्ञानी के ज्ञान से, निबटारा कर्मों से! प्रश्नकर्ता : कईबार व्यवहार में अलग-अलग तरह के कर्म करने पड़ते हैं, जिन्हें बुरे कर्म अथवा पाप कर्म कहते हैं। तो उन पाप कर्मों से कैसे बचा जाए? दादाश्री : पापकर्म के सामने उसे जितना ज्ञान होगा, वह ज्ञान हैल्प करेगा। हमें यहाँ से स्टेशन जाना हो, तो स्टेशन जाने का ज्ञान हमें हो तो वह हमें पहुँचाएगा। पाप कर्मों से किस तरह बचा जाए? यानी ज्ञान जितना होगा इसमें, पुस्तकों में ज्ञान या अन्य किसीके पास ज्ञान होता नहीं है। वह तो व्यावहारिक ज्ञान होता है। निश्चय ज्ञान सिर्फ ज्ञानियों के पास होता है। पुस्तक में वह निश्चय ज्ञान नहीं होता। ज्ञानियों के हृदय में छुपा हुआ होता है। वह निश्चय ज्ञान जब हम वाणी के रूप में सुनें तब हमारा निबेड़ा आएगा। नहीं तो पुस्तकों में व्यावहारिक ज्ञान होता है, वह भी कई स्पष्टीकरण दे सकता है। उससे बुद्धि बढ़ती है। मतिज्ञान बढ़ता जाता है। श्रुतज्ञान से मतिज्ञान बढ़ता है, और पाप से कैसे छूटें इसका निबेड़ा मतिज्ञान लाता है। बाक़ी, और कोई उपाय है नहीं, और या फिर प्रतिक्रमण करे तो छूटे। पर प्रतिक्रमण कैसा होना चाहिए? 'शट ऑन साइट' होना चाहिए। दोष होते ही प्रतिक्रमण किया जाए, तब निबटारा होगा। करो ये विधियाँ, पापोदय के समय! प्रश्नकर्ता : प्रतिक्रमण करने से शायद नये पाप नहीं बँधेंगे, पर पुराने
SR No.009596
Book TitlePap Punya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size268 KB
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