SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निजदोष दर्शन से... निर्दोष! १२५ थी वह मेरी ही थी और वह पकड़ में आ गई।' और वह मुझे भी पकड़ में आ गई, मेरी भूल। और अब आपको क्या कहता हूँ? आपकी भूलें पकड़ो। मैं दूसरा कुछ कहता ही नहीं हूँ। जो पतंग की डोर मेरे पास है, वैसी पतंग की डोर आपके पास है। शुद्धात्मा का ज्ञान खुद प्राप्त किया, इसलिए पतंग की डोर हाथ में रही। पतंग की डोर हाथ में नहीं हो और गोता खाए और चीखें-चिल्लाएँ, कूद-फाँद करें, उससे कुछ मिलता नहीं है। पर हाथ में डोर हो और खींचें तो गोते खाना बंद हो जाता है या नहीं हो जाता? वह डोर मैंने आपके हाथ में दे दी है। इसलिए आपको यह निर्दोष देखना है। निर्दोष दृष्टि से ऐसे शुद्धात्मा देखकर 'उसे' निर्दोष बनाना है। वह थोड़ी देर बाद फिर अंदर से चीखेगाचिल्लाएगा। 'यह ऐसा-ऐसा करता है, उसे क्या निर्दोष देखते हो?' उस समय एक्जेक्टली निर्दोष देखना है और जैसा है वैसा एक्जेक्टली निर्दोष ही है। क्योंकि यह जगत् जो है न, वह आपको दिखता है वह सब आपका परिणाम दिखता है, कॉज़ेज़ नहीं दिखते। अब परिणाम में किसका दोष? प्रश्नकर्ता : कॉज़ेज़ का दोष। दादाश्री : कॉज़ेज़ करनेवाले का दोष। यानी परिणाम में दोष किसीका नहीं होता है। जगत् परिणाम स्वरूप है। यह तो एक मैंने आपको बहुत ही छोटा हिसाब निकालना सिखाया है। और बहुत हिसाब हैं सारे। कितने ही हिसाब इकट्ठे हुए, तब मैंने एक्सेप्ट किया, जगत् निर्दोष है ऐसा। नहीं तो यों ही एक्सेप्ट होता है क्या? यह कोई गप्प है? आप अपनी प्रतीति में ले जाना कि यह जगत् निर्दोष है, ऐसा सौ प्रतिशत है, निर्दोष ही है। दोषित दिखता है, वह ही भ्रांति है। और इसीलिए यह जगत् खड़ा हुआ है बस, खड़ा होने के कारण में दूसरा कोई कारण नहीं है। ज्ञानदृष्टि से देखने जाएँ तो जगत् निर्दोष है और अज्ञानता से जगत् दोषित दिखता है। जगत् जब तक दोषित दिखता है, तब तक भटकते रहना है। और जब जगत् निर्दोष दिखेगा, तब अपना छुटकारा होगा। निजदोष दर्शन से... निर्दोष! जान लिया तो उसका नाम.... जान लिया तो वह कहलाता है कि कभी भी ठोकर न लगे। जेब कट जाए तब भी ठोकर नहीं लगे। और तमाचा मारे तब भी ठोकर नहीं लगे, उसका नाम जान लिया कहलाता है। यह तो 'मैं जानता हूँ, मैं जानता हूँ', गाता रहेगा। इसीलिए हल्दी की गाँठ लेकर गांधी बन बैठे हैं। बाकी, जान लिया तो उसका नाम कहलाता है कि अहंकार नाम मात्र भी न रहे। जेब काट ले, तमाचा मारे, तो भी असर न हो, तब उसका नाम जान लिया कहलाता है। यह तो कोई जेब काट ले न तो 'मेरी जेब काट ली, पुलिसवाले को बुलाओ!' ऐसे शोर मचा देता है। अरे, किस आधार पर कटी, उसका तुझे कुछ पता है? ज्ञानी पुरुष जानते हैं कि किस आधार पर कटा है। जेब काटनेवाला उन्हें गुनहगार नहीं दिखता और इसे तो जेब काटनेवाला गुनहगार दिखता है। जो जेब काटनेवाला निर्दोष है, फिर भी आपको गुनहगार दिखता है, इसीलिए आप अभी तो कितने ही जन्म भटकोगे। जो देखना था वह नहीं देखा और उल्टा ही देखा! जो गुनहगार नहीं है उसे गुनहगार देखा। देखो ये उल्टा ज्ञान सीखकर लाए हैं !! फिर भी वे जो धरम करते हैं, क्रियाकांड करते हैं वह गलत नहीं है। पर खरी बात, खरी हक़ीक़त तो जाननी पड़ेगी न? वह जेब काटनेवाला आपको गुनहगार दिखता है न? वह तो सभी पुलिसवालों को भी जेब काटनेवाला गुनहगार दिखता है और मजदूरों को भी वैसा ही दिखता है, तो इसमें आप कौन-सा नया ज्ञान लाए? वह तो छोटे बच्चे भी जानता है कि इसने जेब काटी है! इसीलिए 'यह गुनहगार है', ऐसा छोटे बच्चे भी कहते हैं, स्त्रियाँ भी कहती हैं और आप भी कहते हैं। तो आपमें और इन सबमें फर्क क्या है? 'मैं जानता हूँ, मैं जानता हूँ' कहते हो, पर लोग कहते हैं वैसा ही ज्ञान आपके पास है न? उसे ज्ञान कहें ही कैसे? दूसरा नया ज्ञान आपके पास है ही कहाँ? 'ज्ञान' ऐसा नहीं होता न? दोष दिखाएँ, कषाय भाव एक क्षणभर कोई जीव दोषित हुआ नहीं है। यह जो दोषित दिखते
SR No.009595
Book TitleNijdosh Darshan Se Nirdosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size48 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy