SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२३ १२४ निजदोष दर्शन से... निर्दोष!! प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : यह टाइम सब बेकार गया। सब निर्दोष हैं, ऐसा समझे कि हल आ गया। प्रश्नकर्ता : हमारी कोई जेब काटे तो तुरन्त हम ऐसा कहते हैं कि यह मेरे कर्म का उदय हुआ, तो तुरन्त वह व्यक्ति निर्दोष दिखता है। दादाश्री : इतना यदि ज्ञान में आ गया, यह मेरे ही कर्म का उदय है, तब वह निर्दोष दिखे वह ठीक है। वह अनुभवपूर्वक का कहलाता है। प्रश्नकर्ता : वह अनुभवपूर्वक का कहलाता है? दादाश्री : हाँ। प्रश्नकर्ता : अपने कर्म का दोष है, ऐसा दिखे तो? दादाश्री : हाँ, वही कि यह मेरे ही कर्म का उदय है, उसका दोष नहीं है यह। यह है, वह जागृति कहलाती है। और वैसे ही आप बोलो कि जगत् पूरा निर्दोष है, वह अभी आपको पूरा अनुभव में नहीं आया है। इसीलिए ये कुछ खास बातों में आपका ऐसा डिसाइड (नक्की) हो जाता है और कुछ बातें ऐसी रहेंगी कि जिसमें डिसीज़न (निर्णय) नहीं होता है। इसलिए आपको मान ही लेना है। फिर है, तो टाइम आएगा तब वह डिसाइड हो जाएगा। हम जवाब जानते हों, तो फिर हिसाब लिखतेलिखते आ जाता है, तब पता चल जाता है। जवाब जानते हों तो अच्छा है न?! प्रश्नकर्ता : हाँ, अब कोई भी हमें फल मिले या कोई भी कार्य हो, प्लस या माइनस (अधिक या कम) पर वह अपने कर्म के अधीन ही है, ऐसा मान लिया जाता है... दादाश्री : हाँ, दूसरा कुछ है ही नहीं। अपना ही है सब। माइनस निजदोष दर्शन से... निर्दोष! कहो तो भी अपना और प्लस कहो तो भी अपना। पर व्यवहार में हमें उसे कहना चाहिए कि भाई, आपने अच्छा काम कर दिखाया, ऐसा बोलना चाहिए और खराब किया हो तो उसे ऐसा नहीं कहना चाहिए कि आपने खराब किया। प्रश्नकर्ता : तो उसे क्या कहना चाहिए? दादाश्री : उसे कुछ भी नहीं कहना चाहिए। उसके प्रति मौन रहना चाहिए। क्योंकि अच्छा न कहे तो उसे एन्करेजमेन्ट (प्रोत्साहन) नहीं मिलता। उसके मन में ऐसा होता है कि यह सेठ तो कुछ बोलते ही नहीं। वह तो ऐसा ही समझता है न कि 'मैंने किया यह !' अपने कर्म के उदय से करता है, ऐसा वह जानता नहीं है। वह तो कहेगा, 'मैंने मेहनत करके किया है यह।' तो हमें 'हाँ' कहना पड़ता है। अंतिम दृष्टि से जग निर्दोष प्रश्नकर्ता : अब कोई मनुष्य वैसा नालायक दिखता नहीं है और पहले मुझे नालायक के सिवाय कुछ दिखता नहीं था। दादाश्री : है ही नहीं। वह जाँच-पड़ताल करने के बाद ही तो मैंने कहा कि, पूरा जगत् मुझे निर्दोष दिखता है। प्रश्नकर्ता : शुद्धात्मा न देखें तब ही दोषित दिखता है न? दादाश्री : दोषित कब दिखता है कि शुद्धात्मा न देखें तब दोषित दिखता है और दूसरा उसका हिसाब नहीं निकाला उसने। एक्जेक्टली (वास्तव में) यदि हिसाब निकाले तो वह खुद ही कहेगा, दोष देखनेवाला ही कहेगा, भाई मेरी ही भूल है यह तो। इसीलिए यों अकेला शद्धात्मा देखने से ही कुछ खतम नहीं होता है। वह तो आगे ही आगे चलता रहता है। वह तो पद्धति के अनुसार निकाल होना चाहिए। इसलिए कल हिसाब में से निकाल होना चाहिए कि किस तरह दोष नहीं है उसका। हाँ, उसका दोष है नहीं और यह दिखता है क्यों? भगवान महावीर ने कहा है कि, 'पूरा जगत् निर्दोष है, जो कोई भूल
SR No.009595
Book TitleNijdosh Darshan Se Nirdosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size48 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy